Wednesday 26 February 2020

मेरे अनुभव (१)

प्यारी बिटिया ,

    आज तुमसे कुछ कहना चाह रही हूँ ,समय मिले तब पढना ।
 अपने शरीर की संभाल करना बहुत जरूरी है ,तुम स्वस्थ्य रहोगी तभी तो अपने बच्चों व परिवार का ध्यान रख सकोगी । अपने खाने-पीने का ध्यान रखो । अभी तो तुम्हें बहुत कुछ करना है जीवन में ,बच्चों को पढा-लिखा कर बहुत आगे भेजना है । तुम अगर अभी से शरीर का ध्यान नहीं रखोगी तो ,कैसे कर पाओगी ये सब? एक बात याद रखना ..शरीर स्वस्थ तो सब कुछ ठीक ।
समझते हैं हम ,तुम पर काम का दबाव रहता है पर इतना तनाव ठीक नहीं बेटा ,हम सब तुम्हें बहुत प्यार करते है ..बस इतना ही कहना चाहती हूँ ।
     तुम्हारी माँ 

  सभी ब्लॉगर मित्रों को नमस्कार 🙏 

आप सोच रहे होगें कि शुरुआत मैंनें इस पत्र से क्यों की ? तो मित्रों ,आजकल जहाँ देखो वहाँ तनाव ही तनाव दिखाई देता है ।आसपास कही भी स्वाभाविक हँसी दिखाई नहीं देती ,ऐसा लगता है जैसे मिलने पर लोग जबरदस्ती चेहरे पर मुस्कान लाते हों । 
  इतना तनाव ग्रस्त क्यों है आज का युवा वर्ग शायद जल्दी-जल्दी सब कुछ हासिल करना चाहता है ,कंपीटीशन के जमाने में स्वयं को आगे रखने की होड़ में न ढंग से खाता है न पूरी नींद सोता है ।
  मेरा तो बस इतना ही कहना है ....सबसे जरुरी स्वयं की तंदरुस्ती ,चौबीस घंटों में से कुछ लम्हें अपने लिए निकाल कर पसंदीदा काम करो । अपने समय और कार्य को आवश्यकता अनुसार विभाजित करो ,और सदा मुस्कुराते रहो । सभी के अच्छे स्वास्थ्य की कामना के साथ ......

शुभा मेहता 



  

14 comments:

  1. Baht badhiya jiwanshaili humne apni kuch aeisi bna li hai ki nhi chahte huye bhi tanavgrst rahte hain choti choti baaton ko dil se lgana aur har baat me jhunjhalahat......samajh nhi aata hum kis machine ke kal purje ban gye hain ...
    Wah bahut acche sahi waqt par sahi sakah mashvira aur bahut acche tareeke se hume apne mulyavan samay ka yaad dilana ....adbhut....👏👏👏💐💐💐👍👍👍😊😊😊

    ReplyDelete
  2. साहित्य से परे कभी-कभी हमें अपनी दिल की बात भी शेयर कर लेनी चाहिए... एक बेटी को जो शिक्षा मां से मिलती है वह शिक्षा और कहीं से नहीं मिल सकती है.. एक मां ही जान सकती है । कि आगे कितना लंबा सफर तय करना है उसकी अपनी बेटी को, अगर वह अभी से स्वस्थ नहीं रही तो आगे तकलीफों के भंवर में वह फंस जाएगी स्वस्थ संबंधी मसले उसे हमेशा उलझाते रहेंगे.. वर्तमान में हमारे जीवन में स्थिरता नाम की चीज ही नहीं गई है जब देखो भागा दौड़ी आधुनिकता के नाम पर उन चीजों की खरीदारी करते हैं जो सिर्फ दिखावा भर होती है उसके बाद उस पर खर्च किए गए पैसे बाकी महीने भर के खर्चों पर भारी पड़ जाते हैं हर जगह कंपटीशन का माहौल हो गया है ऐसे में युवा तनाव में आ ही जाएंगे और कई बार तो कई बच्चे तनाव को पार भी नहीं कर पाते हैं उसे चक्रव्यू में उलझ जाते हैं और गलत कदम उठा लेते हैं सच कहूं बहुत ही अच्छा लिखा आपने .....एक सीख तो हमें मिल ही रही है और स्वास्थ्य के प्रति भी सचेत कर रही हैं आप
    ...वर्तमान जीवन शैली ने हमें इतना आधुनिक बना दिया है कि हम जो चीजें हाथ से आराम से कर सकते हैं उन चीजों के लिए भी मशीनों पर निर्भर हो गए हैं
    शुभकामनाएं एवं धन्यवाद

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद प्रिय अनु । सही कहा आपने ,जो काम हम हाथ से आसानी से कर सकते है ,उनके लिए भी मशीनों पर निर्भर हो गए हैं ।

      Delete
  3. तू भी अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना और हमेशा मुस्कुराते रहना।

    ReplyDelete
  4. और ऐसे ही अच्छा अच्छा लिखते रहना।

    ReplyDelete
  5. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (28-02-2020) को धर्म -मज़हब का मरम (चर्चाअंक -3625 ) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    *****
    आँचल पाण्डेय

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आँचल । जरूर आऊँगी ।

      Delete
  6. Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद ओंकार जी ।

      Delete
  7. हर माँ अपनी बेटी को सर्वप्रथम यही सिखाती है पर बेटियाँ हाँ माँ जरूर कहकर भी घर परिवार और सभी को तवज्जो देते हुए स्वयं को भूल जाती हैं और फिर अस्वस्थ माँ बन बेटी को सीख देती हैं...
    लाजवाब सृजन..

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद सखी सुधा जी ।

      Delete
  8. बहुत सुंदर और सार्थक सृजन सखी

    ReplyDelete
  9. सहमत ... ख़ुद को देखना अपने स्वस्थ को देखना बहुत ज़रूरी है ... तभी सब प्रसन्न रहेंगे ... सार्थक सृजन ...

    ReplyDelete