बडे आम है.....
किसी का रूठना
किसी का मनाना
पर मैं .....
तो कभी रूठी ही नही
हालाँकि कई मौके आए
जीवन में .......
कि रूठा जा सकता था
पर , जानती थी कि
कोई मनाएगा नहीं
सारी उम्र बस
इसको उसको मनाती ही रही
लगी रही उधेडबुन में
उधडी ऊन से बुने
स्वेटर की गांठें पीछे
छुपाती रही ......।
शुभा मेहता
10th ,Dec ,2023
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ReplyDeleteमन के नम अहसासों को व्यक्त करती सुंदर कृति।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद सखी
Deleteजो दूसरों को मनाने की कला जानता है, वह ख़ुद को मनाने की कला पहले ही सीख चुका है !
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद अनीता जी
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद।
Deleteलगी रही उधेडबुन में
ReplyDeleteउधडी ऊन से बुने
स्वेटर की गांठें पीछे
छुपाती रही ......।
बहुत खूब सखी,ये भी हमारा हुनर है,सादर नमन आपको
बहुत-बहुत धन्यवाद सखी ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद ओंकार जी
Deleteमन के सीले एहसास ... काश कोई होता ... बहुत खूब ...
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद दिगंबर जी ।
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ReplyDeleteभावपूर्ण अभिव्यक्ति.। सादर अभिवादन शुभा जी !
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद मीना जी
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