Sunday, 10 December 2023

रूठना ....

रूठने -मनाने के किस्से 
  बडे आम है.....
 किसी का रूठना 
  किसी का मनाना 
    पर मैं .....
    तो कभी रूठी ही नही 
      हालाँकि कई मौके आए 
       जीवन में .......
        कि रूठा जा सकता था 
           पर , जानती थी कि 
             कोई मनाएगा नहीं 
               सारी उम्र बस 
                इसको उसको मनाती ही रही 
                  लगी रही उधेडबुन में 
                    उधडी  ऊन से बुने 
                    स्वेटर की गांठें पीछे 
                        छुपाती रही ......।
                          

शुभा मेहता 
10th ,Dec ,2023

16 comments:

  1. मन के नम अहसासों को व्यक्त करती सुंदर कृति।

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद सखी

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  2. जो दूसरों को मनाने की कला जानता है, वह ख़ुद को मनाने की कला पहले ही सीख चुका है !

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद अनीता जी

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद।

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  4. लगी रही उधेडबुन में
    उधडी ऊन से बुने
    स्वेटर की गांठें पीछे
    छुपाती रही ......।

    बहुत खूब सखी,ये भी हमारा हुनर है,सादर नमन आपको

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  5. बहुत-बहुत धन्यवाद सखी ।

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  6. बहुत सुंदर रचना

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद ओंकार जी

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  7. मन के सीले एहसास ... काश कोई होता ... बहुत खूब ...

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  8. बहुत-बहुत धन्यवाद दिगंबर जी ।

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  10. भावपूर्ण अभिव्यक्ति.। सादर अभिवादन शुभा जी !

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद मीना जी

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