न जाने किस उम्मीद मेंं
पथराई आँखें
रोज टकटकी लगा
देखा करती बंद दरवाजे को
निरन्तर ..
इक आस है
अभी भी
दिल के किसी कोने में
एक दिन जरूर लौटेगा
लाल उसका
सात समुंदर पार से ..
याद है जब बचपन में
खेलता था
हवाई जहाज से
कहता उडना है इसमें बैठकर
तब क्या पता था
सच में छोड़ ये बसेरा
उड़ जाएगा ....दू.....र...।
शुभा मेहता
Adbhut rachna h seedhe saral shabdon mein ki gyi abhivyakti atulniy jeete raho khush rah bahut ashish aur pyaar 😘😘😘😘😘👏👏👏👏👏👏
ReplyDeleteआशा की अनवरत साधना को शब्द देती अभिव्यक्ति ! गहराते भाव,भूकभुकाती उम्मीद,तैरते शब्द पर सब कुछ नि:शब्द! पथराई आंखों की टकटकी में!!! बहुत सुंदर रचना!
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय विश्व मोहन जी।
Deleteवाह !!! बहुत खूब .... शानदार रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद नीतू जी ।
Deleteभावात्मक रचना ....
ReplyDeleteधन्यवाद रितु जी ।
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक १९ मार्च २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बहुत बहुत धन्यवाद श्वेता ,मेरी रचना को पाँच लिंकों मेंं स्थान देने के लिए ।
Deleteबहुत लाजवाब....
ReplyDeleteहृदयस्पर्शी.... वाह!!!
धन्यवाद सुधा जी ।
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