Friday, 23 March 2018

एहसास..

बचपन ,भोलापन ,निष्फिक्र
  गाना ,नाचना ,हँसना ,रोना
   सब कुछ कितना प्यारा
     जैसे जैसे उम्र बढी़
      ये सब बातें कब भूल गए
      एहसास ही न हुआ
        भूल गए वो पल
       जो बचपन में जिये
      न जाने कहाँ गया वो भोलापन
      फिर दौडने लगे
     पैसे और स्टेटस की अंधी दौड़ में
    कब किसका दिल दुखाया
     एहसास  ही न हुआ 
      परवाह नहीं कि
      किसके आँसू बहे
      वो रिश्तों की गरमाहट
      खो गई इस अंधी दौड़ में ...।

  शुभा मेहता .
      
     

     
    

      
     

7 comments:

  1. Wah kitne sahaj sundar bhavon ko itni saralta se vyakt krti h tu bahut khoob khoob likh khush rah mast rah sukhi ho dher saara pyaar 😘😘😘😘😘😘😘

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  2. इसलिए कहते हैं बच्चा बने रहना सब से अच्छा ...
    इस भौतिक सुख की दौड़ में इंसान खो गया है ... कहा है वो ...
    सुन्दर रचना है ...

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद दिगंबर जी ।

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  3. वाह !!! शानदार रचना

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    1. धन्यवाद नीतू जी ।

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  4. बिलकुल सही शुभा जी वो रिश्तों की गर्माहट आधुनिकता की अंधी दौड़ में कहीं खो सी गयी है

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    1. धन्यवाद रितु जी ।

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