Friday 5 December 2014

जीवन की मुस्कान

जब भी  तुम गलियों से गुजरो ,अपने चेहरे पर मुस्कान ओढ़ लो ,और देखो कितने लोग पलट कर मुस्कुराते है ।
     मुस्कुराओ,मुस्कुराओ तुम्हारी मुस्कराहट तनाव को कम करेगी ।
    ये सब  बातें पढ़ने और सुनने में कितनी अच्छी लगती हैं पर क्या वाकई में हम ऐसा करते हैं ,नहीं ना ।
      आजकल जिसे देखो वह तनाव ग्रस्त रहता है ।  प्रेशर -प्रेशर , बस सभी को किसी न किसी चीज का तनाव  ।  नौकरी में तनाव ,व्यवसाय में तनाव, विद्यार्थी की पढाई का तनाव यहाँ तक आज कल छोटे-छोटे बच्चे भी तनाव ग्रस्त रहते हैं । पुस्तकों  का बोझ उठाते -उठाते न जाने उनका बचपन कहाँ खो जाता है । और फिर दसवीं तक पहुँचते-पहुँचते बच्चे इतने तनावग्रस्त हो जाते हैं कि कई बार उन्हें मनोचकित्सक के पास ले जाना पड़ता है ।
        वास्तव में ख़ुशी है क्या?
    ये तो हमारे  अन्तर मन की प्रेरणा है ।जिसे हम अपनी भौतिक सुख सुविधाऒ को जुटानें और जिम्मेदारियों  को निभानें में खोते जा रहे हैं ,और फिर दोष देते हैं परिस्थितियों को या फिर  लोगों को । सोचतें हैं के शायद ऐसा होता तो ज्यादा मज़ा आता या  वैसा होता तो हम अधिक खुश होते  । फिर धीरे धीरे  ये हमारी आदत बन जाती है कि सामने आई ख़ुशी हमे नज़र ही नहीं आती ।
  वैसे अधिकतर लोग ज़िन्दगी को पूरी तरह जी ही नहीं पाते        क्योंकि हम अपने दिमाग को भी कुछ हदों में बांध लेते हैं और हर चीज़ की उसी तरह देखना चाहते हैं जैसा दिमाग में सेट किया होता है ,अगर हमारे माइंड सेट से कुछ अलग हुआ तो उसे स्वीकार नहीं कर पाते और फिर सिलसिला शुरू होता है तनाव , डिप्रेशन का ।
    याद कीजिये बचपन में जब छोटी चॉकलेट मिलती थी तो हम कितने खुश ही जाते थे  ,मानो दुनियां भर की खुशियाँ मिल गई हों  । तो फिर देर कैसी ?  जीवन को देखना शुरू कीजिए बच्चे के मन से ,जीने का थोडा सा तरीका बदलिये बस फिर खुशियाँ आपकी झोली में ।
    ये तो आपके मन में ही है ,टोर्च लेकर इधर -उधर मत ढूँढिये ।

 
     
  

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