Monday 11 November 2019

बाल दिवस

राह से गुजरते हुए 
अचानक याद आया 
  दूध लेना है 
घर के लिए 
  रुकी एक डेयरी पर 
  तभी अचानक 
  लगा जैसै 
  पीछे से कोई 
   मेरा कुरता पकड कर 
    खींच रहा था 
     मुडकर देखा 
     एक छोटा बच्चा 
      होगा करीब 
      छ -सात साल का 
       हाथ में गुब्बारे थे 
        बोला ..ले लो ,ले -लो 
         बहन जी ........
          अरे ,नहीं चाहिये मुझे 
          मैं बोली ......
          एक भी नहीं बिका सुबह से 
            ले लो न एक तो ..
             बहुत भूख लगी है 
               ले लो न ......
                 कुछ खाऊँगा 
                  अच्छा एक दूध की थैली 
                  मुझे भी ले दो 
                   देखना है मुझे 
                   कैसा स्वाद है इसका ..
                    अच्छा ...दूध पीना है तुम्हें 
                       ठीक है .......
                       ले लो बेटा तुम भी 
                     दूध पियो आज 
                       साथ में बिस्कुट भी लो ..
                        पर ये तो बताओ
                 क्यों बिका नहीं एक भी गुब्बारा आज
                 बोला आज सारे बच्चे 
               पहले से ही गुब्बारे लेकर आए थे 
                 कुछ बोल भी रहे थे ..
               बाल दिवस ...बाल दिवस ।
 

                    

11 comments:

  1. Superb wah wah baal man kitna nirih aur saral bahut damdaar kavita baal divas ke upalakshy par jeeti raho ayemr aisi hi samvedansheel aur josochne ko majboor kare kavitayen likh

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  2. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 12 नवंबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद! ,

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद श्वेता ।

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  3. शुभा दी, हर त्योहार के अलग-अलग लोगों के लिए अलग अलग मायने होते हैं। किसी बच्चे के लिए बाल दिवस खुशी लाता हैं तो किसी बच्चे के लिए मायुसी। बहुत सुंदर रचना।

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद ज्योति ।

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  4. मासूम बच्चे जो मजबूरी में श्रमिक बनते हैं उनके लिए तो वही दिन बालदिवस है जिस दिन उन्हें मजदूरी अच्छी मिले या फिर उनकी दिल इच्छा पूरी हो । बहुत हृदयस्पर्शी सृजन शुभा जी ।

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद मीना जी ।

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  5. हृदय स्पर्शी शुभा जी ।
    संसार में फैली ये दुर्भिक्ष मन को क्लांत करती है और हम बस एक परीधि तक ही कुछ कर पाते हैं मन कभी-कभी खुद को दोषी पाता है पर..

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    1. बहुत-बहि धन्यवाद सखी ।

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  6. देश के आम बाल का हृदयस्पर्शी चित्रण

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  7. मार्मिक ...
    आज के हालात का आइना है ये रचना ... इतने सालों में हम देश का बचपन भी नहीं संवार सके हैं ... क्या सच में पूर्ण है इस दिवस का मनाना ...

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