बेटा, जो दिनभर मेहनत करते है ,मजदूरी करते हैं ।जैसे बोझा उठाना ,घरों में काम करना और भी बहुत से काम ।
वो देखो सामनें घर बन रहे हैं न ,देखो.... बहुत से लोग सिर पर ईँट ;पत्थर लिए इधर से उधर जा रहे हैं वो सब मजदूर हैं।ये लोग दिनभर मेहनत करते हैं और पैसे कमाते है और अपना जीवन चलाते हैं।
अच्छा .......इसका मतलब माँ भी मजदूर है वो भी दिनभर सबका काम करती है, डाँट भी खाती है ,पर उसे तो कभी पैसे नही मिलते ।
वो अलग तरह की मजदूर है क्या ?
शुभा मेहता
30th April ,2022
हृदय को छूती मार्मिक लघुकथा। मासूम मन में उठे प्रश्न करीने से उकेरे है।
ReplyDeleteबेहतरीन 👌
बहुत-बहुत धन्यवाद प्रिय अनीता
Deleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (1-5-22) को "अब राम को बनवास अयोध्या न दे कभी"(चर्चा अंक-4417) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
बहुत-बहुत धन्यवाद सखी कामिनी जी।
Deleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय ।
ReplyDeleteमार्मिक लघुकथा
ReplyDeleteबहुत-बहुत आभार ओंकार जी ।
Deleteदिल को छूती बहुत सुंदर लघुकथा।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद ज्योति
Deleteसुंदर लघु कथा आदरणीय ।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद ।
Deleteमर्मस्पर्शी गहन भाव !!
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद
Deleteसुंदर लघुकथा।
ReplyDeleteबहुत ही हृदयस्पर्शी लघुकथा
ReplyDeleteवाह!!!