छोटी -सी तीली
कितनी ताकतवर !
जला देती है
कितने ही आशियाँ...
सुलगा जाती है
जीते -जी
कितने ही तन
कितनी बसें ,कारें
और न जाने क्या -क्या
बेहिसाब..............।
और ,शब्दों की तीली ?
जला देती है
कितने ही मन
अंदर तक ....
बढा़ देती है
आपसी बैर
बना देती
अपनों को ,
अपनों का दुश्मन
देती है जख्म
अनदिखा ...।
और फिर ,कुछ लोग (तथाकथित अपनें)
देते हवा उस आग को
जो बुझ नहीं पाती ता-उम्र
दूर से देखकर
ताली बजाते ..।
शुभा मेहता
Fantastic superb apne hi hawa dete hain machis ki teeli se lgai aag ko aur majaa lete hain taaliyan bja bja kar kya baat hai shubha gazab likha hai sach me bahut bahut hi purjor tareeke se apni awaz di hai kalam ko aur likh khoob likh dhardaar hoti jaa rhi hai teri kalam teri shaili aur teri soch bahut bahut pyaar 👏👏👏💐💐💐👍👍👍😊😊😊😘😘4
ReplyDelete😊😊😊😊
Deleteखूबसूरत अह्साशों से भरी बेहतरीन कविता प्रस्तुत की है आपने
ReplyDeleteधन्यवाद संजय जी ।
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
२७ जनवरी २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
धन्यवाद श्वेता !
Deleteसुंदर अभिव्यक्ति प्रिय सखी शुभा जी ! बेहद खूबसूरत।
ReplyDeleteधन्यवाद प्रिय सखी ।
Deleteएक माचिस एक तीली काम अनेक बिल्कुल सत्य
ReplyDeleteऔर अपने ही हवा देते और बजाते ताली
यथार्थ
बहुत-बहुत धन्यवाद ।
Deleteसुंदर अभिव्यक्ति शुभा जी ,सादर नमस्कार
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद कामिनी जी ।
Deleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद ओंकार जी ।
Deleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति, शुभा दी।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद ज्योति ।
Deleteअच्छी कविता शुभा जी बधाई
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteअत्यंत सुन्दर रचना शुभा जी ।
ReplyDeleteशब्द तीली बने या तीर सब ध्वस्त कर देती है. सुन्दर रचना बधाई.
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