मैं , मुस्कान ,हँसी और ख़ुशी
बचपन की थी खास सहेलियाँ
हरदम रहती साथ -साथ
खेला करती , कूदा करती
फिरती बनकर मस्त मलंग
मुस्कान सदा होंठों से चिपकी रहती
हँसी भी उसके साथ ही रहती
बीत रहे थे बचपन के वो दिन
ख़ुशी के संग
फिर एक दिन
किसी ने दरवाजे पर
दी दस्तक
देखा तो खड़ी थी चिंता
मैंने फटाक से
बन्द किया दरवाजा
नहीं -नहीं .....
तुम नही हो मेरी सखी
पर वो तो थी बड़ी
चिपकू सी
पिछले दरवाजे से
हौले से आ धमकी
एक न जाने वाले
अनचाहे मेहमान सी
भगा दिया मेरी
प्यारी सहेलियों को
दे रही है
दिन ब दिन
माथे पर लकीरें
केशों की अकाल सफेदी
लगता है अब तो
गुमशुदा की तलाश का
इश्तिहार देना होगा
अगर किसी को
मिले कहीं
हँसी , ख़ुशी , मुस्कान
उन्हें मेरा पता बता देना ।
Friday, 19 February 2016
मेरी सहेलियाँ
Thursday, 11 February 2016
जग जननी
हे जगजननी
वीणावादिनी
हंसवाहिनी
करते तुम्हे प्रणाम
हम सब बालक
है अज्ञानी
दे दो थोडा ज्ञान
करें वन्दना
तव चरणों में
कर दो जग उत्थान
दीप जले चहुँओर ज्ञान का
फैले तेज प्रकाश
मन के दीप भी
प्रेम बाती से
रोशन कर दो
हर लो तम अज्ञान
तुम तो माँ हो
हम बच्चों की
सुन लो करुण पुकार ।
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