Sunday, 26 April 2020

जिज्ञासा

खिड़की में से चाँद ,आजकल 
कितना सुंदर दिखता है 
और सितारे इत्ते सारे ..
 यहाँ कहाँ से आ गए ?
  पहले तो कभी ना देखे ..
    इतने चमकीले से तारे 
    नन्ही गुडिया पूछ रही थी 
      प्रश्न थे मन में ढेर सारे।   
  मैं बोली ,बिटिया रानी 
  रहते आजकल सभी घरों 
   ना है गाडियों की हलचल 
    धुआँ ,गंदगी हो गई है कम 
     इसीलिए आकाश है साफ 
       चाँद चमकता ,तारे दिखते 
        आई कुछ समझ में बात ।
         प्रश्न एक फिर उसनें दागा 
          बोली ..क्या जब सब ,
           हो जाएगा पहले जैसा 
             चंदा फिर से होगा धुंधला
           और सितारे छिप जाएंगे ?
             


मुझे तो कोई उत्तर नहीं सूझा ,अगर आपको पता हो तो कृपया बताइये ..🙏
शुभा मेहता 

  
     
     
   


  

Wednesday, 22 April 2020

आग

आग चूल्हे  की हो 
या पेट की...
   एक जलती है   
तब दूसरी बुझती है 
 और चूल्हा जलता कब है?
   पूछो उन  मजदूरों से .. ....
    आज बोल कर गया था 
     घरवाली से 
     चूल्हा जलाने की 
     तैयारी रखना 
      आज तो कुछ न कुछ 
      कमाकर ही लौटूँगा ।
      घरवाली बोली कुछ नहीं ,
        बस बेबस सी देखती रही.....।
  
   साँझबेला में 
    बच्चे , झोंपडी के अंदर 
      पैबंद लगे    
    परदेनुमा लटकते टाट के 
     छेद में से झाँककर 
     देख रहे थे माँ को 
      चूल्हे में लगाते लकडियाँ
        लगता है आज तो जलेगा चूल्हा 
          सोच रहे थे  ...
         रोज माँ गीली पट्टी पेट पर रख 
          सुला देती है ..
          हे ईश्वर आज तो 
            जरूर कुछ मिल जाए बाबा को 
             कर रहे थे प्रार्थना 
            मूँदे आँखे ..।

 शुभा मेहता 
20th ,April ,20200
          

Friday, 10 April 2020

खलनायक (लघुकथा)

रानी नें जैसे ही घर मेंं कदम रखा ,उसकी माँ नें कहा रानी देखो तुमसे मिलने कौन आया है । 
कौन आया है माँ ?रानी ने पूछा 
अरे वो मास्टर जी ,जो बचपन में तुझे पढाने आया करते थे ,भूल गई क्या ? शायद भूल भी गई हो तुम सात साल की होगी तब । 
मास्टर जी का नाम सुनकर रानी की मुट्ठियाँ भिंचने लगी ,क्रोध से चेहरा तमतमा उठा । बोली ..उसे कैसे भूल सकती हूँ ...बदमाश कहीं का । कैसी -कैसी हरकतें करता था ..हमेशा मुझे छूने की कोशिश रहती थी उसकी ,मन करता है जाकर एक जोरदार थप्पड़ रसीद करूँ ..
रानी मन ही मन बुदबुदाई ।
अरे ,कहाँ खो गई रानी ..जा मास्टर जी से मिल ले ,बेचारे कब से तेरा इंतजार कर रहे है ...हुंह ..बेचारे ..ये शराफत का मुखौटा पहने खलनायक है ...। 
नहीं मिलना मुझे ..कहना तो चाह रही थी ,पर कह नहीं पाई ..न जाने कौनसा डर है ..न तब कुछ कह पाई ,न अब । 
  शुभा मेहता 
  9th April ,2020
  

Wednesday, 1 April 2020

यूँ ही ,कुछ मन की बात ..

नमस्ते मित्रों ..
   आजकल' कोरोना 'की वजह से सभी अपने -अपने घरों में है । यह अच्छी बात है कि घर का पुरुष वर्ग भी दैनिक कार्य जैसे झाडू -पोछा ,बर्तन आदि आदि 
(मैं इसे मदद का नाम नहीं दूँगी )कर रहे हैं ।
  इसको लेकर काफी कुछ वीडियो बन रहे हैं जिसमें पुरुषों को झाडू लगाते हुए ,बर्तन साफ करते हुए या फिर आटा गूंधते हुए दिखाया जाता है ,और पीछे से हँसी की आवाज ...। पुरुष वर्ग इसे मदद कह कर अहसान जताते है ..देखो कितना काम करवाया आज ..।
मेरा प्रश्न यह है ...इसे मदद का नाम क्यों देते है ?
क्या घर केवल महिलाओं का है ?
क्या सारे काम करना महिलाओं की जिम्मेदारी है ?
क्या कभी ऐसा होगा जब पुरुष वर्ग इस भावना से काम करे कि चलो मिलकर  ' अपना ' काम करते है ।
नोट ....ये विचार मेरे अपनें है ....😊

शुभा मेहता 
2ndApri ,2020