Thursday, 27 October 2016

दीपावली

लो आई फिर
दीपावली
  चलो ,इस बार
मन के किसी कोने में
दीप जलाएं इक
शांति का ,
प्रीति  का
स्नेह का
  फिर इस
   मन दीप से
  दीप से दीप जलाएं
  दीपमाल से गुँथ जाएँ
   जैसे इक माला के फूल
फूल सुगंध से महकाएं
   ये दुनियाँ सारी ।
   
                शुभा मेहता
               27th Oct. 2016

Tuesday, 18 October 2016

मेरा बचपन

   वो बस्ता लेकर भागना
    सखी -सहेलियों से
     कानाफूसियाँ
   भाग -दौड में
    चप्पल टूटना
     टूटी चप्पल जोडना
     नाश्ते के डब्बे
     कपडों पर स्याही के धब्बे
     माँ से छुपाना
     ओक लगाकर पानी पीना
     खेल की छुट्टी में
      बेतहाशा दौडना
      घुटनों को तोडना
       कपडों की बाँह से
      पसीना पोंछना
     किरायेकी साइकल  
    के लिए लडना -झगडना
    छुपन-छुपाई गिल्ली -डंडा
    सितौलिया , भागम भाग
     न ट्यूशन का टेंशन
   न पहला नंबर ही लाने का झंझट
कितना प्यारा था मेरा बचपन
       अब इस आधुनिकता की 
    दौड में कहाँ खो गया ये सब
   आज के बच्चों का तो
     जैसे छिन सा गया बचपन ।

                          शुभा मेहता
                      18th October 2016