छोटी सी ,प्यारी सी गुडिया सी थी वो ,नाम था उसका रानी । माँ ,पापा ,दादा ,दादी सबकी दुलारी । हमेशा मुस्कुराती रहती और बहुत मीठा बोलती थी ।
बहुत बडा सा घर था उनका ,न जाने कितने छोटे -बडे़ कमरे थे । घर के नीचे लाइन से आठ ;दस दुकानें थी ,जो सभी किराए पर दी हुई थी ।
रानी रोज उन दुकानों का चक्कर लगाती ,और जब दुकानदार आदर से उसे हाथ जोड नमस्ते करते ,तब वो अपने आप को किसी राजकुमारी से कम न समझती ।
उन सभी दुकानों में एक दुकान किराने की भी थी ,रानी को वहाँ बैठना सबसे अच्छा लगता था । वहाँ बैठकर वह लोगों को चीजें खरीदने देखती थी ।
रानी देखती ,कि कुछ लोग रोज बहुत थोडी थोडी चीजें खरीदते थे एक या दो रुपये में शक्कर ,चाय ,दाल थोडा सा तेल । वो दुकान वाले चाचाजी से पूछती ,ये लोग रोज इत्ती -इत्ती सी चीजें क्यों लेते हैं एक साथ क्यों नहीं लेते ..तब दुकान वाले चाचाजी उससे कहते ..बेटा ये रोज़ कमाकर रोज़ खाने वाले लोग है बहुत गरीब हैं ।
रानी को तब समझ नहीं आता ये गरीब क्या होता है ?
समय गुज़रा और देखते-देखते रानी सयानी हो गई ,पढाई पूरी होते -होते उसका विवाह भी अच्छे घर में निश्चित हो गया ,और रानी ब्याह कर ससुराल चली गई । कुछ समय तक सब कुछ ठीक चलता रहा फिर अचानक एक दिन जोरों की बाढ़ आई और बहा ले गई उसके घरोंदे को , इतने जतन से बसाया घर मिनटों में तहस -नहस । पूरे घर का सामान बाढ़ की भेंट चढ़ गया । रानी नें हिम्मत न हारी ,अपने पति और परिवार वालों के साथ फिर से लगन व मेहनत से घरौंदा बनाया । आराम से गृहस्थी चलनें लगी । इस बीच रानी दो प्यारे -प्यारे बच्चों की माँ बन गई । समय पंख लगाकर उडने लगा ।
अचानक फिर से जोरों का तूफान आया ,रानी का जीवन फिर से हिचकोले खाने लगा । और इस बार तूफान नें सब कुछ तहस -नहस कर दिया ।
कुछ समझ नहीं आ रहा था करें तो क्या करें ।
बच्चे भी अब बडे़ हो चले थे । उनकी शिक्षा में कोई कमी नहीं आनी चाहिए ,यह सोच रानी अपने पति के साथ फिर से हिम्मत के साथ जूझ पडी ,अपने घरौंदे को फिर से बनाने में । उसे भरोसा था ,कल जरूर अच्छा होगा ।
अब उसे समझ आ गया था कि गरीबी क्या होती है ...,जब वो सौ रुपये में शक्कर ,दाल थोडा सा तेल लाती ,आँख से दो अश्रु बिंदु आनायास ही निकल पड़ते ।
शुभा मेहता
26th June ,2019