Monday, 22 May 2017

विश्वास....

   अटकूं कहीं तो
    इशारा करता है तू ही
    भटकूं कहीं तो
     साथ देता है तू ही
     आकांक्षाएं , एक के बाद एक
      बढ़ती चली जाती
      पाने की लालसा में
     लगती हैं ठोकरें भी
    हर वक्त  ,ठोकर खाने के बाद
   हाथ थामता है तू ही
  कभी -कभी तो
   आकाश छूना होता है मुझे
   तब तू ही कहता है
  कोशिश कर , र कोशिश
   अनवरत.......
  न रोक पाएगा
  कोई तुझे
   आगे बढ़..
    तू जो दे सकता है
    वो कहाँ और कोई
    दे सकता
  . दिखाई देता नहीं
     पर रहता है साथ सदा
     मेरा विश्वास ....
   
         शुभा मेहता
        22May , 2017
  

Wednesday, 10 May 2017

आत्म भ्रमण

  मन ने कहा ,चलो आज
   चलोगी आत्म भ्रमण पर
    मैं बोली क्यों नही
     सबसे पहली मुलाकात
     स्वयं के अहम् से
     गुफ्तगू हुई
     शायद इसी के
    कारण उलझनें हैं कई
     चाहा छोड़ दूँ राह पर इसे
     कम्बख्त ,छोड़ता ही नहीं
      साथ ही चला वो
       आगे मिला क्रोध ..
        बना दिया है
       जिसने कइयों को
         नाराज़ , खुद को बीमार
        फिर टकराए .ईर्ष्या ,द्वेष
       न खुद रहते चैन से ,न रहने देते
        कब से खोज रही थी
        जिस निर्मल प्रेम को
        देखा तो दुबका बैठा था
       इक कोने में
        जगाया , झकझोर के उठाया
          कहा ,जागो ....
       आज दुनियाँ को
       सबसे अधिक जरूरत है
        तुम्हारी ,चलो
        बना दो जग को    
       प्रेममय ,छेड़ो कोई
         तान मधुर
        सब रंग जाएँ
         रंग तुम्हारे ......
          मैं भी ....।
        
           शुभा मेहता
         10 May ,2017
        
        

Monday, 1 May 2017

मजदूर....


सिर पर ईंटों को ढोता
  चिलचिलाती धूप हो
  या आँधी -तूफान
    बरस रहा हो या
   मेघ अविरत...
    करना है
    उसे तो काम
    रोटी का सवाल है भाई
    उसका छोटा बच्चा भी
    दो ईंटें उठाए
     चल रहा पीछे -पीछे
     ढीली चड्डी
   खिसकती जाती
   पकड़ नहीं पाता
    हाथ जो बोझ से लदे हैं
    बहती नाक और पसीना
     एक हुआ जाता
      बनाता आशियाना
     औरों का
     खुद का पता नहीं
    कभी यहाँ ,कभी वहाँ
    शायद इधर -उधर में
     जीवन पूरा हो जाएगा
    उसे तो  पता भी न होगा
   मजदूर दिवस है आज.....
   
        शुभा मेहता
     1st May ,2017