मेरे लिए वो महज
कागज का टुकडा नहीं था
दिल निकाल कर रख दिया था मानों
एक -एक शब्द प्रेम रस में पग़ा था
प्रेम की ही स्याही थी
कलम भी प्रेम की...
शब्दों को प्रेम रस में
डुबो -डुबो कर
बड़े जतन से
उस कागज पर
सजाया था
पता नहीं
तुमने पढा भी
या नहीं
या उडा दिया
चिंदी-चिंदी
हवा का रुख
जिधर था ......
शुभा मेहता
23rd Aug ,2023