आजकल हमारे देश में स्वास्थ्य के प्रति लोग जागरूक होते जा रहे हैं । मोर्निंगवॊक और योग का प्रचलन बढ गया है । खासकर बडी-बडी सोसाइटियों में योगा स्टेट्स का प्रतीक बनता जा रहा है । पर कया इस देखादेखी के चक्कर मे इसका पूरा लाभ प्राप्त होता भी है या नही ?
कुछ लोगो के अनुसार "योग"कुछ कठिन आसान करना है कुछ लोग आसनो की संख्या पर जोर देते है । पर क्या इस तरह हम वास्तव में स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कर सकते है ? मेरे हिसाब से योग का वास्तविक अर्थ है शरीर, दिमाग और मन का सच्चा तालमेल ।यह एक ऐसा विज्ञान है जिसके द्वारा हम अपनी आंतरिक शक्ति को प्रज्जवलित कर सकते हैं ।
जीवन में छोटे-बड़े किसी भी कार्य को सहजता से करने के लिए हमारे शरीर व मन दोनो का स्वस्थ्य होना जरूरी है । योगासन के अभ्यास के द्वारा हम मन की शांति व स्वस्थ्य शरीर पा सकते है ।
Wednesday, 27 November 2013
योग
Sunday, 17 November 2013
मनोवृति
नवरात्री की समाप्ति के बाद मै घर की सफाई अभियान मे लगी हुई थी । रद्दी सामान का ढेर बढता जा रहा था ,सोच रही थी कि आज तो रद्दी वाला आए तो ये सब कबाडा साफ हो जाए फिर कल तो करवा चौथ भी है । तभी रद्दी वाले की आवाज़ सुनाई दी मै दौडकर उसे बुलाने गई और फिर जल्दी-जल्दी कबाड और अखबार वगैरह इकट्ठा करने लगी । रद्दीवाला एक-एक चीज को अलग करके देख रहा था मैने कहा - भैया सब देखा हुआ है तुम जल्दी से सब ले जाओ तो वह बोला बहन जी हमारा काम है सब चीजे अच्छी तरह देख कर ही लेते है । पर मुझे तो बड़ी जलदी थी । मेरे बहुत जोर देने पर वह सब लेकर हिसाब करके चला गया । मै भी अपने दूसरे काम में लग गई । लगभग एक घंटे बाद डोरबैल बजी । मैने दरवाजा खोला तो पाया कि वही रददीवाला खडा था बोला बहनजीआपकी रददी के अंदर से ये निकला है कहते हुए उसने छोटा सा पाउच मेरी तरफ बढाते हुए कहा । मै तो देखकर सन्न रह गई इसमें तो मेरे सोने के कान के बुंदे थे जो मैने कल पहनने के लिए निकाले थे जल्दबाजी मे मैने उन्हें भी देखें बिना दे दिया ।अपनी लापरवाही पर कोफ्त हो रही थी । पर उस रददी वाले की ईमानदारी पर गर्व हो रहा था जिसकी वजह से आज मुझे इतना बडा नुकसान होते-होते रह गया ।मैने उसे इनाम देना चाहा पर उसने यह कहते हुए इंकार कर दिया कि ये तो मेरा फर्ज था ।
उसी दिन की बात है करवा चौथ के दिन हम लोग मेहदी लगाते है । सोचा शौपिंग मौल के बाहर आजकल मेहदी लगाने वाले होते है वहीँ जाकर लगवा लेते है ।रात के दस बज चुके थे। वहाँ जाकर देखा तो लम्बी लाइन थी ।लगभग आधे घंटे के इंतजार के बाद हमारा नंबर आया साथ मे पोती और बहू भी थी । लगभग ग्यारह बजने को आए थे । घर पास ही था फिर भी हमनें सोचा औटोरिक्षा कर लिया जाए । बडी मुश्किल से एक औटो वाला रुका हम सोच रहे थे कि देखो कितना भला आदमी है । घर पँहुच कर मैने पूछा भैया कितने पैसे हुए "।उसनें कहा "पैतालिस रुपये" हमनें सोचा रात का समय है ,कया बहस करें । मैने उसे सौ का नोट दिया तो वह बोला पाँच रूपये छुटटे दो । मैने कहा ठीक है आप बाकी के पैसे दो ।इसपर वह वही जोर-जोर से चिललाने लगा कि कौन से पैसे ?आपने तो मुझे पचास का ही नोट दिया था ।और वस मुझे ही झूठा ठहरा कर भाग गया ।मै आशचर्य चकित सी उसे जाते हुए देख रही थी।
दोनो घटनाएँ एक ही दिन की पर दोनों में कितना अंतर !यही तो है मानव की मनोवृति ।
Thursday, 14 November 2013
सतरंगे सात चक्र
इन चक्रों को संतुलन में रखने के लिए हम योग ,प्राणायाम ,और वैकल्पिक हीलिंग प्रणाली का उपयोग कर सकते हैं ।
Wednesday, 13 November 2013
बाल दिवस
आज बाल दिवस है यानि चाचा नेहरु का जनम दिन । बचपन मे निबन्ध रटते थे कि उन्हें बच्चों से बहुत प्यार था इसलिए उनका जनमदिन बालदिवस के रूप मे मनाया जाता है ।तब हमारे लिए बाल दिवस का मतलब नये कपडे पहन कर ,स्कूल जाना और पढाई से छुट्टी होता था कयोकि पूरे दिन बाल मेला व सांस्कृतिक कार्यक्रम चलते थे ।
आज भी स्कूलोँ मे बालदिवस मनाते है । और आज भी इस दिन बच्चे खूब मजा करते है । पर हमें यही अपने कर्तव्य की इतिश्री नही मान लेनी चाहिए ।आज के बच्चे कल का भविष्य हैं उन्हें अच्छी शिक्षा व संस्कार देना है ।अघिकतर देखा गया है कि बच्चों को पढाते या सिखाते समय नकारात्मक सीख दी जाती है जैसे -ये मत करो ,या फिर उधर मत जाओ । इसकी जगह अगर हम ये कहें कि ये काम करो देखो कितना अच्छा है ,इधर आओ तो उनपर सकारात्मक असर होगा और आगे जाकर उनका उत्तम विकास होगा ।
Tuesday, 12 November 2013
विदाई
मिलते हैं जो बिछडते भी हैं वो,
बिछडता है दिन साँझ से जैसे मिलकर ।
आज मिलते हैं दोस्त, कल जुदा होते हैं,
है दस्तूर ये ही इस नश्वर जहाँ का।
तो फिर कयों ?ये तेरा ,ये मेरा
वो ऐसा ,वो वैसा,
यही राग गाते हैं ।
अरे,आज हैं कया भरोसा है कल का,
पता है सभी को है जाना तो इक दिन,
फिर कैसा ये झगड़ा, ये नफरत ये हिंसा,
इसलिए ही तो ये कहना है मेरा,
सदा मुसकुराओ ,सदा गुनगुनाओ ।
Monday, 11 November 2013
अखंड सौभाग्य
अखंड सौभाग्यवती रहो -रमा को दादी की आवाज सुनाई दी। यह तो उनके घर का रोज का क्रम था ,जब भी माँ पूजा करके माँ के पैर छूती दादी उन्हें रोज यही आशीष देती । तब रमा को इसका मतलब पता नहीँ था क्योंकि वह बहुत छोटी थी ,लेकिन उसके बालमन पर यह अंकित हो चुका था कि ये सबसे अच्छा आशीर्वाद है कारण रमा की दादी भी उसकी माँ से बहुत स्नेह रखती थी । उसके पिताजी भी हर काम माँ की सलाह से ही करते थे । कुल मिलाकार उनका परिवार एक खुशहाल परिवार था । समय का चक्र चलता रहा ,आज रमा की शादी है ,वह खुश है आज उसे भी वही आशीर्वाद मिल रहा है। रमा विदा होकर ससुराल आ गई है । ससुराल का वातावरण जरा भिन्न है पति उग्र स्वभाव के है । वह ससुराल में हमेशा सबको खुश रखने की कोशिश करती रहती । इस बीच वह दो संतानों की माँ बन चुकी है ।समय गुजरता रहा
उसके पति अब रिटायर हो चुके हैं ,बच्चे पढ-लिख कर स्थाई हो चुके हैं । पति का स्वभाव उग्र से उग्रतर होता जा रहा है । अब वह मन ही मन सोचती कि उसके बाद कौन इनका ध्यान रखेगा ? रमा अब मजबूर थी । हे ईश्वर उसकी इतने सालों की प्रार्थना को मत सुनना ।