अपनी तन्हाई को
सीने में समेटे रहती हूँ
कभी हँस लेती हूँ
.कभी चुपचाप
कुछ अश्क पी लेती हूँ
कभी पलट पन्ने डायरियों के
सूखे फूलों की महक लेती हूँ
बैठ झरोखों मेंं यादों के
कुछ सैर किया करती हूँ
अब तन्हाई रास आ गई है मुझको
सिर्फ ख्वाबों में तेरा नाम लिया करती हूँ।
शुभा मेहता ..
Thursday 29 March 2018
तन्हाई....
Friday 23 March 2018
एहसास..
बचपन ,भोलापन ,निष्फिक्र
गाना ,नाचना ,हँसना ,रोना
सब कुछ कितना प्यारा
जैसे जैसे उम्र बढी़
ये सब बातें कब भूल गए
एहसास ही न हुआ
भूल गए वो पल
जो बचपन में जिये
न जाने कहाँ गया वो भोलापन
फिर दौडने लगे
पैसे और स्टेटस की अंधी दौड़ में
कब किसका दिल दुखाया
एहसास ही न हुआ
परवाह नहीं कि
किसके आँसू बहे
वो रिश्तों की गरमाहट
खो गई इस अंधी दौड़ में ...।
शुभा मेहता .
Wednesday 21 March 2018
जल ,अनमोल .....
जल ही जीवन है
जानते हैंं सब
पर रखते इसका ध्यान कितने
कि बचाना है इसको
करके जतन
समझना होगा इसका मोल
क्योंकि ये तो है अनमोल
बहते नल दिन रात कहीँ
नल चलते जब ब्रश करते
नल चलते ,बरतन धुलते
सोचो कितना है नुकसान
जान लो हर बूँद की कीमत
समय रहते पहचान लो ये बात
रखो ध्यान ,रखो ध्यान ...।
शुभा मेहता.
22March 2018
Tuesday 20 March 2018
डर..
इस शहर से कुछ दूर
इक बस्ती है ..
बसते है वहाँ भी
कुछ इंसान
घरों के नाम पर हैं
कुछ टूटे-फूटे
टाट के पैबन्द लगे दरवाजे़
टीन की दीवारें
गरमी मेंं झुलसते तन
ठंड में ठिठुरते
और बारिश में तो
न जाने कितनी बार नहाते
चिथड़ों मेंं लिपटे छोटे छोटे बच्चे
सुबह खाया तो शाम का ठिकाना नहीं
पर शायद डर नहीं कोई मन मेंं
कुछ चोरी हो जाने का
या फिर अपमानित होने का
हार जानें का या कुछ खो लेने का
दिखावे का या मान सम्मान का
रोज अपमानित होने की आदत जो पडी हुई है
अपने ही जैसे इंसानों से
न आँधी का डर न तूफान का ,
उड गई जो टीन की दीवारें
सो लेगें कुछ रोज
खुले आसमाँ के तले
जोड लेगें फिर से
लगाएगे पैबंद नए.....
.शुभा मेहता
11th April 2018
.
Wednesday 14 March 2018
हसरतें
हसरतों की दुनियाँ
उम्मीदों का दामन पकडे़
चली जा रही हैंं
मंजिल की ओर
सफलता, असफलता
आशा ,निराशा
सभी को साथ लिए
हसरतों का क्या
एक पूरी हुई तो
तत्काल दूसरी का हुआ जन्म
सिलसिला जारी
ता उम्र ...।
उम्मीद
न जाने किस उम्मीद मेंं
पथराई आँखें
रोज टकटकी लगा
देखा करती बंद दरवाजे को
निरन्तर ..
इक आस है
अभी भी
दिल के किसी कोने में
एक दिन जरूर लौटेगा
लाल उसका
सात समुंदर पार से ..
याद है जब बचपन में
खेलता था
हवाई जहाज से
कहता उडना है इसमें बैठकर
तब क्या पता था
सच में छोड़ ये बसेरा
उड़ जाएगा ....दू.....र...।
शुभा मेहता
Wednesday 7 March 2018
सबला ...
सभी को महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं ...
नहीं है तू अबला
दिखा दे जमाने को
थाम हाथ इक दूजे का
चल साथ -साथ
बना ले मुट्ठी
पथ मेंं हों चाहे
लाखों कंटक
न रुक, चल बढ़
लाँघ ले हर बाधा
न होने दे अब
कोई अग्नि परीक्षा
न बने कोई अब, उपेक्षित उर्मिला
चल निकल पड़
पाने को मंजिल
छू ले आसमाँ ....।
शुभा मेहता ..
8 th March ,2018