रंग बिरंगे फूल खिले हैं
खेतों और खलिहानों में
आमों पर भी बौर आ गए
कोयल कूके डालों पर
चारों ओर छाई हरियाली
कोमल कोमल प्यारी प्यारी
दूब लगे कालीन समान
गेहूँ की बालें लहराएं
मस्त हवा के झोंके से
वाह..........
कितना सुंदर दृश्य मनोरम
धरती लगती कितनी सुंंदर
पर वो किसान ..
जो है हम सबका पालनहार
करता खून पसीना एक
खेतों को लहराने मेंं
अन्न धान उगाने मेंं
क्यों है उदास ?
क्यों है विवश
कर्ज में डूबा
अपनें ही लगाए
पेडों पर
लटक जानें को
आत्मदाह कर जाने को
छोड़ जाने को
रोते बिलखते
बच्चों को ...
शुभा मेहता
27 th January ,2018