Wednesday, 28 February 2018

उदास बचपन

  उदास मन ,उदास तन
   चारों ओर उदासी
    न है कोई आसपास अपना
    न समय किसी के पास
    कोई तो पूछे
     मेरे दिल का हाल
     माँ -पापा... बस काम ही काम
     हाँ लाकर जरूर दिए हैंं
    ढेरों खिलौने
     पर खेलूँ किसके साथ
    कितने सारे गेजेट्स ..
    उन्हें क्या मालूम
     कितना हूँ अकेला
    बस चाहत है
    कुछ पल तो रहें
    वो मेरे साथ
     क्या करूँ..?
    कोई दवा है
    जो दे दे खुशी
     या उदासी को ही गले लगाऊँ
     या फिर खो जाऊँ सपनों मेंं
     या फिर नाचूँ ,गाऊँ
     अकेले मेंं चुपके से कह लूँ
      नहीं है प्यार मुझसे किसी को
   या फिर इस उदासी को
     घोल के पी जाऊँ शरबत में ....।

  शुभा मेहता..

Thursday, 15 February 2018

खलल....

जी हाँ ,पडती है खलल
जीवन में मेरे जब
  आकर कोई कर जाता
  है सपनों को ध्वस्त मेरे
   देता है झकझोर मेरे
    समूचे अस्तित्व को,
  कितनी आसानी से
  कह जाता है ,
  ये करो ,वो मत करो
   शायद उनकी
  नजरों में
   मेरा न कोई अस्तित्व है
  न व्यक्तित्व
    जब भी बुनना चाहूँ
      सपने ,ठानू उन्हें
     पूरा करनें की
   फिर कोई हाथ
   आकर झकझोर जाता है..
    डाल जाता है
      खलल ....अनचाही ...।

शुभा मेहता ..

 

Tuesday, 6 February 2018

नदी ....

मैं हूँ नदी .....
निकल कर पहाड़ों की गोद से ,
  आ पहुँचती धरा पर
    सबका जीवन
   निर्मल करने
      रवि किरणें जब
      मुझको छूती
     मैं चमक उठती रजत सी
      इठलाती ,बलखाती
    चंचल, चपल
    जीवन देनारी ।
    पर  हे मानव ....
   तू क्यों है
   इतना स्वार्थ मगन
    करता क्यों नहीं मेरा जतन
    उँडेल कर जमाने का करकट
    करता है क्यों मुझको मैला
    कहती हूँ तुझसे
    अब भी संभल जा
     नहीं तो तुझको
    कष्ट पडे़गा सहना
      कहीं ये तेरी करनी
     पड़ जाए तुझे न
    मँहगी ....
    संभल जा अभी भी ...
    ओ मानव संभल जा ....।
    
   शुभा मेहता
   7th Feb .2018