नैया और पतवार में ,
नैया ने अभी-अभी ही
वृक्ष में से पाया था
रूप नया ...
सुंदर रंगों से रंगी गई थी
सुन अपनी तारीफें
फूल गई थी कुछ गर्व से
पानी में अपना प्रतिबिंब देख
बढ गया और अभिमान ।
जैसे ही नाविक ने थामी पतवार
ये क्या ....इत्ती पुरानी ,गंदी पतवार
नहीं ,नहीं मुझे नहीं चाहिये तुम्हारा साथ
पतवार धीरे से बोली
सुनो नैया बिन मेरे कैसे करोगी
सागर पार .......
पर नैया को कहाँ कुछ सुनना था
बोली मैं तो चली लहरों के साथ
कुछ दूर जाकर
घबराई ,चिल्लाई
सुनो पतवार
आकर बचाओ
मेरा तुम्हारा तो सदा का है साथ
तुम बिन नहीं होगी नैया पार ।
शुभा मेहता
31st , March ,2020