मन पंछी ........
सुना रहा तराने ,
नए -पुराने
कुछ ही पलों में
करवा दिया ,
बीते सालों का सफर ।
बचपन में कैसे मजे से
खेले ,ना जानें कितने खेल
जी चुराया बहुत पढाई से
भाती नहीं थी न अधिक ....
बस ,खेल कूद ,मौज -मस्ती
नृत्य ,गीत ,संगीत में ही
रमता था मन
कोई भी प्रोग्राम हो शाला में
बस पढाई से छुट्टी ,
प्रेक्टिस के बहाने ...,
बस ,जीना सिर्फ़ अपने लिए
खुद से कितना प्यार था मुझे ,
लेकिन न जाने अब
क्या हो गया ..
क्यों नहीं करती
खुद की फिक्र ?
कभी दर्पण मेंं झाँका है ....
असमय माथे पर लकीरें .
खिचड़ी केश ...
जिम्मेदारी के बोझ तले
झुकी जा रही हो
क्या लौटना नहीं चाहती
वापस "उन"दिनों मे
नहीं चाहती खुल कर जीना ?
अरे नहीं .....ठीक हूँ मैं तो
जैसी हूँ वैसी
और फिर लोग क्या कहेगें....
इस उम्र में
क्या नाचूंगी ,गाऊँगी ?
लोग ....अरे लोगो का क्या
उनका तो काम ही यही है
तू जी ले अपना जीवन
मस्ती में ....।
शुभा मेहता
22nd Aug ,2020