Monday, 22 December 2014

तितलियाँ

खुले पैर बागीचे में दौडना ,
       तितलियों के पीछे,
     उन्हें पकड़ना  ,पर तोड़ देना
   कभी सोचा न था ,क्या गुजरेगी उन पर ।
     आज भी याद है माँ की वो बात ,
   " क्यों पकड़ती हो इन निरीह तितलियों को ,
     काश ,होती ज़ुबाँ इनके भी ,
      बयाँ कर सकती वो दास्ताँ अपनी " ।
       हुआ अब ये अहसास ,
     जब देखती हूँ, सुनती हूँ ,
      न जाने कितनी मासूम तितलियों को,
      पकड़े जाते हुए ,कुचले जाते हुए  ,
     दिल भर जाता है ,रोने को आता है ,
      मन करता है चीखने को ,
    कोशिश करती हूँ ,गला रुंध जाता है ।
      पर अब हिम्मत जुटानी होगी ,
      आवाज उठानी होगी ,
     चलना होगा मिल कर साथ ,
    ताकि,कोई तितली न खोए ,फिर रंगो को ।
       कितने रंग भरती हें ,जीवन में ये  ,
      उड़ती हुई ही अच्छी लगती है ये ।

    

Sunday, 14 December 2014

वाह ,चाय

कल का दिन यानि 15 दिसबर अन्तराष्ट्रीय चाय दिवस के रूप में मनाया जाने वाला है ।  कल दसवां अन्तराष्ट्रीय चाय दिवस है । सभी चाय प्रेमियों को बधाई ।  
     वाह,सुबह-सुबह की पहली चाय का मज़ा ही कुछ और है  ।आराम से बैठ कर धीरे-धीरे चाय की खुशबू का आनंद लेते हुए  चुस्कियाँ लेना ।
    अगर आप भी मेरी तरह चाय प्रेमी हैं तो आपको भी इतना ही मज़ा आता होगा ।
     चाय भारत का सबसे मशहूर पेय है । इसे बनाने का तरीका सबका अलग-अलग हो सकता है ।कोई अदरक वाली तो कोई मसाले वाली या फिर कोई इलाइची वाली चाय पसंद करते हैं ,तो किसी को बिना कुछ डाले सिर्फ चाय का फ्लेवर अच्छा लगता है । जब सर्दी -जुखाम होता है तब चाय पीने से बड़ा आराम मिलता है ।जब हम कभी उदास होते हैं तब एक कप चाय का हमें आनंद देता है ।
    आजकल स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ने से कई प्रकार की 'healthy tea' बाजार में उपलब्ध है जैसे कई फ्लेवर्स में ग्रीन टी ,हर्बल  टी आदि ।
      मेरा ये लेख सभी चाय प्रेमियों को समर्पित है । so cheers with Tea .. .
    हाँ,ध्यान रहे अति सर्वत्र वर्जितः ।

Saturday, 13 December 2014

घर

  मेरा घर ,प्यारा घर ,
         छोटा ही सही  ,एक सुंदर  घर ,
     दौड़ती हूँ जहाँ मैं इधर-उधर  ,
      देखती हूँ झरोखे से उन्मुक्त गगन ।
       करती हूँ उसका खूब जतन 
      एक ओर टिमटिमाता दिया ,
     भीनी सी खुशबू स्नेह भरी ।
     वो गमलों से आती मिट्टी की सौंधास,
       खिले हुए हैं फूल गुलाब ,मोगरा ,जूही ,
     वो बेल चमेली की है मेरी सहेली ,
       वो फूल सूरजमुखी का
       दिलाता है अहसास सूर्योदय का
     महक जाता  है  जिनसे मेरा घर संसार ।
     
     
 

एकाग्रता और ध्यान

ध्यान का शब्दिक अर्थ है -किसी भी काम को मन लगा के करना । बचपन में स्कूल में शिक्षक कहते थे "ध्यान से सुनो" ,या हम जब भी कोई काम सीखते हैं तब सिखाने वाले कहते हैं-ध्यान से देखो ---यानि इसका अर्थ यही हैं कि किसी भी काम को एकाग्रता से करना
      मैंने अक्सर देखा है जब भी कोई व्यक्ति अपनी पसंद का काम करता है तो उसमे पूरी तरह डूब जाता है जैसे राधा जब रोटी बनाती है तो इतने ध्यान से गोल-गोल ,छोटी छोटी बनाती है  उसका ध्यान इसी में रहता है की सभी रोटियां एक ही आकार की बने और उस समय अगर कोई उसे बुलाये तो कम से कम तीन -चार बार आवाज देनी पड़ती है । इसी तरह रमा जब पेंटिंग करती है और विभा गाने का अभ्यास करती है तब उनका भी यही हाल होता है ,उन्हे आसपास की सुधबुध नहीं रहती ।
     तो आप इन सबको क्या कहेंगे ?मेरे हिसाब से ये ध्यान की और जाने का पहला कदम है ।
   जब भी कोई इतनी तल्लीनता से काम करता है तब विचार आने स्वतः ही कम हो जाते हैं ,मन शांत और प्रसन्न हो जाता है ।
    इससे थोडा आगे बढ़कर देखें तो "ध्यान" योग का आठवां अंग है । इसके अभ्यास से शरीर और मन दोनों के कष्ट कम हो जाते हैं ।
  लेकिन सिर्फ आँख बंद करके बैठना ध्यान नही है ।बहुत से गुरु अलग -अलग शिविरों में ध्यान की तकनीक सिखाते हैं ,जैसे 100 से 1 तक उलटी गिनती गिनो ।  शायद ऐसा करने से व्यक्ति उसी में तल्लीन हो जाता होगा और अन्य विचार कम आते होंगे ।
  धीरे धीरे अभ्यास से हम अपने मन और मस्तिष्क की अनावश्यक कल्पनाओं को कम कर सकते हैं ।
    ध्यान हमारे शारीर ,मन और आत्मा के बीच लयात्मक सम्बन्ध बनाता है  ।इससे मन और शरीर को अप्रतिम ऊर्जा मिलती है   ।
     

Friday, 5 December 2014

जीवन की मुस्कान

जब भी  तुम गलियों से गुजरो ,अपने चेहरे पर मुस्कान ओढ़ लो ,और देखो कितने लोग पलट कर मुस्कुराते है ।
     मुस्कुराओ,मुस्कुराओ तुम्हारी मुस्कराहट तनाव को कम करेगी ।
    ये सब  बातें पढ़ने और सुनने में कितनी अच्छी लगती हैं पर क्या वाकई में हम ऐसा करते हैं ,नहीं ना ।
      आजकल जिसे देखो वह तनाव ग्रस्त रहता है ।  प्रेशर -प्रेशर , बस सभी को किसी न किसी चीज का तनाव  ।  नौकरी में तनाव ,व्यवसाय में तनाव, विद्यार्थी की पढाई का तनाव यहाँ तक आज कल छोटे-छोटे बच्चे भी तनाव ग्रस्त रहते हैं । पुस्तकों  का बोझ उठाते -उठाते न जाने उनका बचपन कहाँ खो जाता है । और फिर दसवीं तक पहुँचते-पहुँचते बच्चे इतने तनावग्रस्त हो जाते हैं कि कई बार उन्हें मनोचकित्सक के पास ले जाना पड़ता है ।
        वास्तव में ख़ुशी है क्या?
    ये तो हमारे  अन्तर मन की प्रेरणा है ।जिसे हम अपनी भौतिक सुख सुविधाऒ को जुटानें और जिम्मेदारियों  को निभानें में खोते जा रहे हैं ,और फिर दोष देते हैं परिस्थितियों को या फिर  लोगों को । सोचतें हैं के शायद ऐसा होता तो ज्यादा मज़ा आता या  वैसा होता तो हम अधिक खुश होते  । फिर धीरे धीरे  ये हमारी आदत बन जाती है कि सामने आई ख़ुशी हमे नज़र ही नहीं आती ।
  वैसे अधिकतर लोग ज़िन्दगी को पूरी तरह जी ही नहीं पाते        क्योंकि हम अपने दिमाग को भी कुछ हदों में बांध लेते हैं और हर चीज़ की उसी तरह देखना चाहते हैं जैसा दिमाग में सेट किया होता है ,अगर हमारे माइंड सेट से कुछ अलग हुआ तो उसे स्वीकार नहीं कर पाते और फिर सिलसिला शुरू होता है तनाव , डिप्रेशन का ।
    याद कीजिये बचपन में जब छोटी चॉकलेट मिलती थी तो हम कितने खुश ही जाते थे  ,मानो दुनियां भर की खुशियाँ मिल गई हों  । तो फिर देर कैसी ?  जीवन को देखना शुरू कीजिए बच्चे के मन से ,जीने का थोडा सा तरीका बदलिये बस फिर खुशियाँ आपकी झोली में ।
    ये तो आपके मन में ही है ,टोर्च लेकर इधर -उधर मत ढूँढिये ।