दूर के ढोल सुहावने
पास बजें तो शोर
घर की मुर्गी दाल बराबर
बाहर की अनमोल
कोई अपना ज्ञान बखाने
अधजल गगरी को छलकाए
कोई भैंस के आगे बीन बजाए
पर उसको कुछ समझ न आए
सबको अपना-अपना ध्यान
अपनी ढ़़फली अपना राग
कोई फटे में पैर फँसाए
और उलझ कर खुद रह जाए
अपनी गलती कोई न माने
इक दूजे पर दोष लगाए
इसका ,उसका ,तेरा ,मेरा
करके यूँ ही उमर गँवाए
कोई अंधों में काना राजा
कहीं शेखचिल्ली सी बातें
अजब -गजब हैं लोग तिहारे
वाह री दुनियाँ ,तेरे रूप निराले ।
शुभा मेहता
16th september.2016