कल रात सखि ,
देखा मैंने इक सपना
कि,इस नए साल में
सब हिलमिल गए हैं
झगड़ा ,टंटा कुछ नही
आपस में प्रेम है
न जाति ,न भाषा
की बाधा है कोई
एक स्वर में
गा रहे सब
हम एक हैं
हम एक हैं ...
चारों ओर हरियाली है
बागों में फुलवारी है
बच्चों की किलकारी है
बूढों की मुस्कान
जोश जवानों के
सपनों में
आरक्षण का
नहीं है झंझट
सबको मिला है
उसका हिस्सा
या मजदूर हो
या हो नेता
काश............
न होता ये इक सपना.......
शुभा मेहता
30th December