कोई खास काम नहीं ,
नौकरी भी पूरी हुई
अब कोई रुटीन नही
बस ,सन्नाटा -सा रहता है
सोचती हूँ ,कौन हूँ मैं
घर बनाया ,बगीचा बनाया
और खुद को चारदिवारी में खो दिया
साइकल से ,स्कूटर
स्कूटर से कार ......
तीव्रगति से दौडता जीवन
पर अब .............
धीरे-धीरे चलती हूँ
कहीं गिर न जाऊं ,डरती हूँ
शहर -शहर घूमी
अलग -अलग संस्कृतियों को देखा -जाना
पर अपनें आप से अनजान रही
आखिर मैं हूँ कौन
प्रकृति के साथ भी खिलवाड किया
जाने-अनजाने .....
पानी का भी भर -भर उपयोग (दुरुपयोग) किया
प्रकृति भी अब पूछ रही है
कौन है तू ...?
अब कुछ कुछ आ रहा है समझ
मै तुम हूँ ,और तुम मैं
दोनों को एक दूसरे को सम्हालना है
धरती को स्वर्ग बनाना है ।
शुभा मेहता
2nd Aug ,2025