स्कूल से घर आते ही दीदी का रिकॉर्ड चालू हो गया ..कह रही थी कितना अच्छा ,सुरीला मधुर गाना गाया था उस बच्ची नें ,पर इनाम तो उस ट्रस्टी की बेटी को ही दिया ...जब ऐसा ही करना था तो हमें बुलाया ही क्यों था जज बनाकर । सब दिखावा है ..पहले ही ऑफिस में बुलाकर कह दिया कि प्रथम पुरस्कार तो इसे ही देना होगा ..ये भी भला कोई बात हुई ..बस दीदी बोले जा रही थी ...हर साल इसी ट्रस्टी की बेटी को ही इनाम दिलवाते है ..न सुर का ठिकाना न ताल का ..उस बेचारी बच्ची का चेहरा देखा था ,कैसा उतर गया था ..ये तो वो ही बात हुई न कि अंधा बाँटे रेवडी फिर -फिर उसी को दे।
मैं बोली दीदी ये रेवडी अंधा कैसे बाँटता होगा ,उसे कैसे पता चले कि बँटवारा बराबर हुआ है या नहीं ..दीदी मुझे देखकर मुस्कुरा दी ..बोली अभी तुम छोटी हो ,बडी होगी तब सब समझ जाओगी ।
चलो अब सो जाओ थोडी देर । मैं भी थकी हुई थी जल्दी ही आँख लग गई । तभी सपने में क्या देखती हूँ एक अंधा बडे से झोले में रेवडिय़ां लेकर आ रहा है ,दूसरे हाथ में डंडा है । जब भी मैं रेवडी लेने आगे बढती वो जोर से डंडा पछाडता ..सपने में भी रेवडी न मिली ।
बडी़ हुई ,अच्छी शिक्षा प्राप्त करली , खूब अच्छा रिजल्ट ढेरों सार्टिफिकेट सब कुछ है मेरे पास ,बस सिफारिश नहीं । कल एक कंपनी में इन्टरव्यू है । थोडी चिंता में हूँ ।
सुबह माँ नें दही-चीनी खिलाकर आशीर्वाद दिया सब अच्छा होगा कह कर विदा किया । इन्टरव्यू बहुत अच्छा हुआ ,पता लगा कि नौकरी तो सभी उच्चधिकारियों के रिश्तेदारो़ को दी जा चुकी है । अब समझ आया .......।स्कूल हो दफ्तर हो गांव हो ,शहर हो या देश ,अंधा भी शायद गंध पहचान कर रेवडी बाँटता है ।
शुभा मेहता
17thJan 2020