अचानक दिमाग बचपन की ओर चला गया ...बेचारा शब्द सुनकर ...........
और मैं अतीत के पन्ने पलटने लगी । कभी कभी बचपन में किसी भी शब्द का अर्थ हम अपनी समझ के अनुसार या फिर किसी से सुनकर दिमाग में बैठा लेते हैं और बचपन में दिमाग में बैठी बात ,बहुत गहरी होती है ।
बात बहुत पुरानी है , पाँचवी कक्षा में थी ..हमारी एक शिक्षिका जब भी बच्चों को डाँट लगाती ..'बेचारी'शब्द का उपयोग करती ,तब लगता कि किसी को गुस्से से डांटना हो तो इस 'बेचारी'शब्द का उपयोग किया जाता है ।
तो मैं भी कभी -कभार इस शब्द का उपयोग कर लेती ।
मगर बात तब बिगडी जब एक बार मेरी सहेली से झगडा हुआ तब मैंनें उसे बेचारी कहा ...फिर क्या था उसका गुट अलग .......तीन -चार लडकियाँ जोर जोर से मुझसे झगड़ने लगी .."तेरी हिम्मत कैसे हुई इसे बेचारी कहने की ...इसके माँ,-बाप दोनों हैं उनके हिसाब से बेचारी का मतलब अनाथ
होता था ,जबकि मुझे उस समय ये पता नहीं था ...।
मेरा मन तो अब भी स्वीकारनें को तैयार नहीं था ये अर्थ ।
पर अब क्या ..इस बात पर हमारी दोस्ती टूट गई ..मैंने बहुत समझाया ,पर वो समझी नही ..।
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद ओंकार जी
Deleteअरे वाह, क्या प्यारी याद ताज़ा कर दी आपने, सच में, बचपन में हम कितनी मासूमियत से किसी भी शब्द का मतलब खुद से बना लेते थे। और जब कोई उसका दूसरा मतलब बताता था, तो दिल मानता ही नहीं था। दोस्ती टूटने वाली बात पढ़कर थोड़ा दुख भी हुआ, लेकिन यही तो बचपन की खूबसूरती है, सीख भी देता है और यादें भी छोड़ जाता है।
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