Sunday, 14 July 2024

मसालेदान

"आपके मसालेदान  में कभी मसाले होते ही नहीं ,जब देखो तब खाली" बहू बोली .....। मैं बस मुस्कुरा कर रह गई। 
  मुझे साफ ,चमकता रंग बिरंगे मसालों से सजा मसालेदान बहुत अच्छा लगता था । हर सप्ताह धो कर चमकाती ,फिर मसालों से सजा मसालेदान देखकर बडी खुश होती ।
  मिर्च, धनिया ,हल्दी रंग-बिरंगे मसाले .....
   लेकिन  जब भी अच्छी तरह साफ करती ,मसाले भरती 
अक्सर ही मसालेदान या तो हडबडी में टेढा हो जाता और सारे मसाले आपस में गड्डमड्ड....  .बहुत  बुरा लगता 
 फिर मैंनें भी बस थोड़े-थोड़े मसाले ही निकालने शुरु कर दिए  और फिर ये आदत में शुमार  हो गया ।
   मैं समझती हूँ कई घरों में इस तरह की (बेतुकी)बातें होती होगीं उनका उदभव भी शायद ऐसे ही हुआ होगा ।...अब जिसे असलियत पता न हो उसे तो ये बात बेतुकी ही लगेगी .न कि भला कोई  इतने कम मसाले क्यों निकालेगा ..
है न ......।
  
 

17 comments:

  1. बहुत-बहुत धन्यवाद अनीता जी

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आलोक जी

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  3. प्रिय श्वेता मेरी रचना को पाँच लिंकों के आनंद में स्थान देने हेतु बहुत-बहुत धन्यवाद

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद ओंकार जी

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  5. अहा , घर में कल ही हुई यह बात। लापरवाही में उठाने पर मसाले गड्डी होगये। बहू ने महादानी बदल दी

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    1. ऐसा कभी न कभी सभी के साथ होता है ...बहुत-बहुत धन्यवाद गिरिजा जी

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  6. जी शुभा जी, एक गृहणी के शऊर् को दर्शाती है मसालेदानी! उसका व्यस्थित रहना उनके उत्तम हुनर की पहचान है! वैसे ऐसा अक्सर हो ही जाता की अगर जल्दबाजी में मसालेदानी हाथों से फिसलने का कांड हो गया तो मसालों की दुर्गति देख कलेजा मुँह को आ जाता है! सो आपका सुझाव उत्तम है मसाले कम रखिये! 🙏

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    1. सच साफ -सुथरी रंगीन मसालों से भरी मसालेदानी मन को बहुत भाती है ..है न सखी ..।

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  7. बहुत सुंदर लेख और सुंदर सुझाव भी,

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद मधुलिका जी

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  8. बढियां लिखा है

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद सरिता जी

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  9. सुन्दर रचना

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  10. सच में, हम सबकी ज़िंदगी में ऐसे छोटे-छोटे झगड़े तो होते ही हैं, जो दिखने में बड़े मामूली लगते हैं। मसालेदान के मसलों का उलझ जाना और फिर थोड़ा-थोड़ा निकालना, ये तो हर घर की कहानी लगती है। और हाँ, कभी-कभी जो बाहर से बेतुकी बातें लगती हैं, वो अंदर की असलियत को समझे बिना बनी होती हैं।

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