Thursday, 1 May 2025

फितरत

सच ही कहते हैं .....
हम इंसानों की बडी अजीब -सी 
फितरत है ........
 जो होता है , संतोष नहीं 
जो नहीं है ,बस भागे चले जाते हैं 
  उसके पीछे ..
चैन ,सुकून  सब खो बैठते हैं 
  बस होड़ा-होड़ .....।
    अब देखो न...
प्रकृति प्रदत्त चीजें ,
जो मिली हैं उपहार स्वरूप 
अलग-अलग गुणधर्म लिए 
 अब मिर्ची कम तीखी चाहिए 
  मीठे फलों में नमक मिर्च लगाएंगे
 बेचारे करेले को तो नमक लगाकर कर
इस कदर निचोड लेते है 
   कि बेचारा आठ -आठ आँसू रो लेता है 
 उस पर तुर्रा ये कि ,हमारे करेले 
जरा भी कडवे नहीं ...
गुण धर्म से कुछ लेना -देना ही नहीं
आपका क्या कहना है ? 

शुभा मेहता 
3rd May ,2025


   

15 comments:

  1. जो जैसा है उसे वैसा ही स्वीकारने की कला ही तो जीवन जीने की कला है

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद अनीता जी

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  2. मिलावट है तो मिलावट करने वाले भी हम ही है ।

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  3. बहुत-बहुत धन्यवाद अनुज रविन्द्र जी

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  4. बहुत-बहुत धन्यवाद

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  5. अति सर्वत्र वर्जयेत। इसी लिए हर गुण को मद्धम किया जाता है।

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद

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  6. बहुत सुन्दर कविता. हार्दिक शुभकामनायें.

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद

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  7. बहुत सुंदर

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  8. बहुत-बहुत धन्यवाद

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  9. सही कहा आपने ... संतुष्टि कहाँ है इंसान को ...

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    1. सच में, इंसान की ये फितरत बड़ी अजीब है—जो मिलता है उससे खुश नहीं, जो नहीं मिलता उसकी पीछे भागता रहता है। मिर्ची हो या फलों का स्वाद, सब कुछ बदलना चाहते हैं, पर कभी-कभी हमें वही चीज़ वैसे ही अपनानी चाहिए जैसे वो हमें मिली है। हमें चीजों की असली खूबसूरती और गुणों को समझना चाहिए, न कि उन्हें बदलने की कोशिश करनी चाहिए।

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