कौवे सुबह-सुबह आकर बालकनी में काँव-काँव करते ।
हमनें बचपन में कौवों के बारे में कुछ बातें सुनी थी ,जैसे
अगर उन्हें उडाओ या भगाओ तो ये पीछा नहीं छोडते ,पहचान लेते हैं ,पता नहीं इस बात में कितनी सच्चाई है ।
चलिए फिलहाल तो बात हमारी बालकनी और कौवे की चल रही है ,तो भई एक दिन जब सुबह-सुबह कौवे जी का राग शुरू हुआ, मैंने एक पारले-जी का बिस्कुट बालकनी की मुंडेर पर रख दिया । थोडी देर बाद क्या देखती हूँ कौवे जी धीरे-धीरे मुंडेर पर खिसकते हुए आगे बढ़ रहे थे फिर धीरे से बिस्कुट उठाकर ये जा वो जा ...।
अब तो उनका रोज का क्रम बन गया ,मुझे भी आनंद आनें लगा ,अब वो ज्यादा काँव-काँव नहीं करते बस दो तीन बार आवाज लगाते है और बिस्कुट पाकर उड़ जाते हैं ।
एक दिन सुबह-सुबह देखा तो पारले-जी बिस्कुट खत्म हो गया ,मैंनें उसे गुड-डे बिस्कुट दिया ,पर कौवे जी को पसंद नहीं आया बिना लिए ही उड गया बेचारा ,तब समझ आया कि खानें में इनकी भी पसंद-ना -पसंद होती है ।
शुभा मेहता
13th June, 2025
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ReplyDeleteइस समय गर्मी का मौसम है.. घर के द्वार / आंगन में पक्षियों के पीने के लिए मिट्टी के पात्र में जल रख देता हूं ... तमाम तरह के पक्षी आते जाते रहते हैं..इनकी तमाम तस्वीरें भी ली गई हैं... बढ़िया लगता है इनका आना जाना चहकना.. हर पक्षी अपने समय पर आता है ... पक्षियों को दाना पानी देना पुण्य का काम है..उजड़ा पन्ना ब्लॉग प्रकाशित करूंगा एक लेख इसी पर।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद सर । सच में पक्षियों की चहचहाहट में अनूठा आनंद मिलता है ।
ReplyDeleteपरिंदों के साथ रहो जो आनंद आने लगता है ...
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद दिगंबर जी
ReplyDeleteबहुत सुंदर रिश्ता है प्रकृति और मानव के बीच
ReplyDeleteजी ,बहुत सुंदर.. । धन्यवाद
Deleteरोचक
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