सुबह -सुबह आज
कोई मिली मुझे
मैंने देखा उसे
बड़ी खूबसूरत सी
सजी -सँवरी सी
ग़ौर से देखा मैंने
कोशिश की पहचानने की
शायद , कहीं देखा है
सोचा , चलो उसी से
पूछते हैं
मैंने पूछा कौन हो तुम ?
लगती तो पहचानी सी हो
बोली , अरे मैं ज़िन्दगी हूँ
तुम्हारे साथ ही तो रहती हूँ
पर तुमने तो जैसे मुझे
जीना ही छोड़ दिया
कहाँ है वो ख़ुशी
कुछ उदासीन से
रहते हो अरे ,
जब तक मै हूँ साथ
हँस लो , मेरा लुत्फ़ उठा लो ।
शुभा मेहता
Wednesday, 16 March 2016
जिदंगी
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वाह बहुत बहुत बढ़िया क्या बात है अब तेरी कलम जोर पकड़ती जा रही है खूबसूरत अभिव्यक्ति सरल साफ सीधे शब्दों में जियो बहुत जियो मजा आ गया बहन 👏👏👏👏💐💐💐💐😘😘😘😘
ReplyDeleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
९ सितंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बहुत-बहुत धन्यवाद श्वेता ।
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