ओ कान्हा......
इक बार तो आओ
संग मेरे भी
फाग रचाओ
अरे , सुनते क्यों नहीं ?
बैठ कभी कदंब डाल पर
छेडो इक तो मधुर तान
सुना है , पहले दौडे़ आए थे
सुन पुकार द्रौपदी की
अब क्या हुआ है ?,
क्यों सुनाई नही देती
हजारों द्रौपदियों की
करुण पुकार
न जानें कितनें
दुर्योधन और दुःशासन
करते चीरहरण
प्रश्न तो यही
मेरा है तुमसे
क्या तुम भी
इस कोलाहल में
सुन नही पाते
करुण पुकार ....
शुभा मेहता
24 Aug ,2016
Wednesday, 24 August 2016
कान्हा.....
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Wah aaj ke sandarbh se kitni khoobsurti se joda h shayad aaj kanha ko karun pukar ke samvet kanth sunai nhi dete
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