Sunday, 1 December 2019

बिटिया

कितनी खुश थी 
माता आज 
 बिटिया जन्मी .....।
पापा का भी हर्ष न समाए 
  दादा.-दादी फूले न समाए 
 चेहरे पर मुस्कान 
  दिल में प्यार 
  बिटिया जन्मी ...।
घर-घर बाँटी खूब मिठाई 
 बाँधे बंदनवार 
 बिटिया रोती ,
  पापा रोते 
  माता रोती साथ 
   क्यों रोती हो
   मेरी लाडो 
    हम हैं तेरे साथ 
   बिटिया जन्मी . .।
    घुटने चलती 
     बाजे पायल 
     गूँजे हँसी -किलकार 
    वारी जाएँ तेरी हँसी पर 
      दूँ मैं तेरी नजर उतार 
        बिटिया जन्मी ..।
          लाड़-प्यार में 
          बडी हो रही 
            दे दी तूने 
           खुशियाँ अपार 
          बिटिया जन्मी ..।
         पर हाय ..ये हुआ क्या 
        पल भर में ही 
        उजड गया मेरा संसार ....
           लूट लिया वहशी दरिंदों ने 
           गिद्ध -कौओं समान 
            हाय .....विधाता ..
            ये ही है क्या तेरा न्याय ?
          फूल सी बिटिया कुचली गई 
          हुआ दरिंदगी का वहशी नाच 
           क्या करूँ कुछ समझ न आए 
              किससे करूँ गुहार 
              कहाँ से लाऊँ तुझको वापस 
            किसको करूँ दुलार ।
  शुभा मेहता 
1st Dec ,2019 
              
           
    
    
             


17 comments:

  1. Kisi samay kaha jaata thha ki beti aayi ab ghar me laxmi aayegi par laxmi ko kya pta tha ki kahin ayr ravan se bhi jyada vahshi durachari aur sbse jyada nikrisht praani ne janm liya jo laxmi ko taar taar kr jaayega hamara samaj kahan jaa rha hai ek andgeri gufa ki aur agrasar hai jahan se koi bhi nhi laut paaya kavita ka marm aaj shayad us samaj ne nirarthak kr diya hai par hame koshish krte rahna hai ek sahi disha nirdesh dete rahna hau aur teri kavita ka uddeshya bhi vahi hai 👏👏👏👏👏💐💐💐💐💐👍👍👍👍👍😊😊😊😊😊😘😘😘😘😘

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  2. किसी समाज के लिए इससे दुखद कुछ और नहीं हो सकता । कई बार लगता है कि आगे बढ़ने की आपा धापी में हम लोग कितने पिछड़ गए है, कितने संवेदनहीन हो गए हैं।आज की बेटियों की स्थिति का सही चित्रण शुभा जी।🙏🙏🙏🙏

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    1. धन्यवाद राजेश जी ।

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  3. समसामयिक एवं सटीक प्रस्तुति

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय ।

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  4. ये इस समाज और हम सब की साझा फेलिअर है ... शर्म से झुक जाता है सर ऐसी घिनोने समाचार सुन के ... बेबसी के अलावा कुछ सूझता नहीं है ...

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    1. सच में कितना बेबस महसूस करते हैं हम स्वयं को ,जब रोज ऐसी घटनाएं घट रही होती है ।

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  5. सामयिक और अति सुन्दर रचना।

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  6. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (03-12-2019) को "तार जिंदगी के" (चर्चा अंक-3538) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद अनु जी ।

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  8. बेहद हृदयस्पर्शी रचना सखी

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  9. वाह !आदरणीय दीदी जी बेहतरीन सृजन
    सादर

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद सखी ।

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  10. वाह! अद्भुत रचना।
    मैं बिल्कुल खुश होकर पहली पंक्ति से पढ़ रहा था...लेकिन बीच पंक्ति के बाद अचानक एक धक्का सा महसूस हुआ...और फिर तात्कालिक घटित घटना का एक काल्पनिक दृश्य सामने उभर गयी। मन में क्रोध एवं आक्रोश उत्पन्न हो गया उन दरिंदों के लिए।

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद प्रकाश जी ।सच में रोज ब रोज घटती इन घटनाओं से मन खिन्न हो जाता है .

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