Saturday, 21 March 2020

22 मार्च ..दृश्य मेरी बालकनी से ...

आज आकाश कुछ ज्यादा ही 
नीला-सा ,साफ -सा लगा 
मानों रंगरेज नें.....
  अभी रंग कर भेजा हो 
   सुबह -सुबह वो 
   ठक-ठक की ,
  लयबद्ध आवाज़..,
  जो मेरे घर के 
    तीनों ओर बन रही 
     बहुमंजिली इमारतों से 
     आया करती है 
     जिससे अक्सर मेरी 
      नींद खुला करती है ,
       गायब थी ......।
      कबूतरों की गुटर-गूं...
       इतनी जोर से 
       शायद पहली बार सुनी थी 
      साथ ही दूर कहीं से 
      बंदरों की हूप-हूप और 
       मोर भी बोला .....!
      आसपास के घरों में 
     जहाँ पालतू कुत्ते हैं 
      जोर-जोर से भोंक रहे हैं 
       शायद रोज की तरह 
       घूमने जाना चाह रहे हैं ।
      सड़कें सूनी ...
      अच्छा लगा 
     इस कठिन समय में
     सब मिलकर इस 
     'कोरोना'नामक दैत्य से लडें
      पहली बार साथ 'लडने'की बात है 😊
       स्वस्थ रहें ,मिलकर इस दैत्य को 
     पछाडऩे का संकल्प करें ।

  शुभा मेहता 
22thMarch ,2020
     
     



21 comments:

  1. बाहरी शोर मौन हो तो आंतरिक हलचल लुभाती आती है। प्रकृति की गुनगुनाहट सुनना बहुत सुखद एहसास है न दी।

    ReplyDelete
    Replies
    1. सही बात है श्वेता 😊

      Delete
  2. Lockdown ki jaroorat pdi paryavaran ko kshanik sudharne ki aur
    Kya is lockdown se ham kuch seekhenge ya corona ko pachadne ke baad wahi dhaak ke teen paat.aur corona namak daitya is paryavaran ko dooshit pradooshit karne ka hi parinam hai ye toh ek trailer maana jaaye aur bhi bhayavah ho skta hai yadi him abhi nhi chete
    Teri kavita ka mere liye toh yahi majmu dikhta hai jahan vatavaran swachhand roop se aahladid ho rha ho one of your very sensitive poem meep it up .......👏👏👏😘😘😘💐💐💐👍👍👍😊😊😊😊

    ReplyDelete
  3. मौन का संगीत
    ये एकांत में मुखरित! -- बहुत सुंदर चित्रण!

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद विश्वमोहन जी ।

      Delete
  4. सटीक और सामयिक रचना

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद ।

      Delete
  5. बहुत खूब ,कुछ ऐसी ही अनुभूति आज हो रही हैं ,कहने को मौत से बचने के लिए सन्नाट पसरा हैं मगर एक सुकून भरा सरगम भी सुनाई दे रहा हैं ,लाज़बाब सादर नमन आपको

    ReplyDelete
  6. बहुत खूब प्रिय शुभा जी।दुनिया में शोर इतना हो चुका है जिससे हम प्रकृति के नाद और पक्षियों के कलरव से वंचित हो चुके थे । भले क्रां बहुत बदहवासी वाला है , पर ये स्वरहींनता सुकूँ दे रहीं है। 👌👌🙏🙏

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद प्रिय सखी रेनू ।

      Delete
  7. इंसान चाहे अपने लिए ही जागा हो ... कम से कम कुछ तो सोच रहा है आज इंसान कहाँ जाना है ... ये तेजी अच्छी है या रफ़्तार कुछ कम हो ...

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद दिगंबर जी ।

      Delete
  8. भावपूर्ण और सुंदर कविता, आज जरूरत है इसी सकारात्मक सोच की

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद ।

      Delete
  9. सुंदर प्रस्तुति।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद ।

      Delete
  10. Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद ।

      Delete
  11. सकारात्मक सोच लिए सुंदर अभिव्यक्ति,शुभा दी।

    ReplyDelete