हँसती -गाती ,
मुस्कुराती ,सुंदर ,सलोनी -सी
माँ की दुलारी थी .
कितने सारे सपने थे उसके
कुचल दी गई
वहशी दरिंदों द्वारा
क्या हो गया है
इंसान ...
इंसान से मिटकर
बन गया हैवान है
रो रही है मानवता
फूटफूट कर
जीत रही है ताकत
सत्ता की ..
पैसे की ...
बिक रहे हैं लोग
चंद सिक्कों की
खनखनाहट मे ।
शुभा मेहता
30th Sept ,2020
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 01.10.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
जी ,बहुत-बहुत धन्यवाद ।
Deleteएक नहीं थी कई कई थी आशायें।
ReplyDeleteजी ,बात तो आपकी सही है ..न जाने कितनी आशाएँ ..दरिन्दों की भेंट चढ जाती है
Deleteसमसामयिक परिदृश्य पर मार्मिक कविता...
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आपका ।
Deleteशुभा दी, न जाने हमारे समाज से यह रोग कान मिटेगा?
ReplyDeleteसही कहा ज्योति ।
Deleteवेदना भीतर तक भेद रही है । आह !
ReplyDeleteजी,स्वागत है आपका मेरे ब्लौग पर ।
Deleteइंसान ...
ReplyDeleteइंसान से मिटकर
बन गया हैवान है
रो रही है मानवता
फूटफूट कर
जीत रही है ताकत
बिलकुल सही कहा आपने,कब रुकेगा ये घिनौना कुकर्म ?
शरीर ही नहीं अब तो आत्मा तक छननी हो चुकी है।
सही कहा सखी ।
Deleteबढ़िया प्रस्तुति
ReplyDeleteधन्यवाद ओंकार जी ।
Deleteसही कहा आपने। कुछ तत्व आशा को निराशा में बदलने की कोई कसर नहीं छोड़ते।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद ।
Deleteबहुत खूब !
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद ।
Deleteबहुत ही सुंदर रचना। आज के परिप्रेक्ष्य में सार्थक व विचारणीय। साधुवाद आदरणीया।
ReplyDeleteधन्यवाद पुरुषोत्तम जी ।
Deleteधन्यवाद पुरुषोत्तम जी ।
Deleteभावपूर्ण अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद ।
Deleteहृदय में टीस छोड़ती मार्मिक रचना ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteसभी रचनाएँ अपने आप में अद्वितीय हैं - - नमन सह।
ReplyDeleteन जाने कितनी ही आशाएं कुचली जा रही हैं इन बहशी दरिंदों द्वारा....
ReplyDeleteबहुत ही मार्मिक हृदयस्पर्शी सृजन।
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteमार्मिक ... दिल को छूता हुआ गुज़र गया ...
ReplyDeleteBahut khub likha apne. Asha karta hu ese hi aap hame or vichar or lekh deti rahengi.
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