बात कुछ दिनों पहले की है....जब कोविड का डर नहीं था । मैं रोज बगीचे में घूमने जाया करती थी । वहाँ एक बेंच पर अक्सर एक लडकी को अकेले गुमसुम बैठा देखती । एक दिन जा पहुँची उसके पास और वहीं बैठ गई । मैंने उसकी ओर मुस्कुरा कर देखा बदले में उसनें भी एक फीकी -सी मुस्कान दी ।अब तो रोज में उसके पास जाकर बैठने लगी पर उसे कभी खुश नहीं देखा ।मैं बात करने की कोशिश भी करती तो वह बस हूँ ,हाँ में जवाब देती।
एक दिन मौका देखकर मैंनें उससे पूछा ..बेटा ,इतना उदास क्यों रहती हो ?सुनकर डबडबाई आँखों से बोली ..आंटी ,मैं सुंदर नहीं हूँ न ,इसलिए मुझे कोई प्यार नहीं करता , न घर में और न बाहर । सब मुझे काली -कलूटी कह कर चिढाते हैंं और मेरी खुद की माँ कहती है कौन करेगा तुझसे शादी ? और रोज न जाने कौन -कौन से नुस्खे गोरा होने के मुझ पर प्रयोग करती है ....तंग आ गई हूँ मैं तो ।
तभी एक बडी -सी काली बदली आई और जोर से बरसात होने लगी ..मैंनें कहा चलो कही शेड के नीचे चलते हैं ..वो बोली आप जाइये मैं यहीं बैठी हूँ शायद बारिश से मन कुछ शांत हो जाए ...। और वो वहीं बैठी रही । मैंनें महसूस किया मानों वो बादल से पूछ रही है......
ओ..बादल .....
क्या इस बार तेरी लिस्ट में
नाम है मेरा ?
मेरे मन के कोने-कोने को भिगोने का
मैं भी मन के किसी कोने में
तेरी नमी महसूस करूँ
मेरा भी मन करता है
कोई मुझको प्यार करे ,
स्नेह दे ....
मैं खूबसूरत नहीं ,
क्या ये दोष है मेरा ?
कितना बुरा लगता है मुझे
क्या तुम्हे पता है....?
मैं भी कुछ उदास हो गई .....समझ नहीं पा रही ...क्यों करते हैं हम ये भेदभाव ?जानबूझ या अनजाने में क्यों किसी का दिल दुखाते हैं? क्या रंग -रूप हमारे हाथों में है ?बंद होना चाहिए ये सब ?क्या गोरा या सुंदर होना ही इंसान के अच्छा होने का सबूत है ?
.शुभा मेहता
25th Nov ,2020
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" गुरुवार 26 नवंबर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद यशोदा जी ।
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय ।
Deleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय ।
Deleteसुन्दरता के पैमाने नहीं होते। सुन्दर।
ReplyDeleteधन्यवाद सर ।
Deleteये भी समाज की एक गूढ़ समस्या है..।बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति..।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद ।
Deleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार (२६-११-२०२०) को 'देवोत्थान प्रबोधिनी एकादशी'(चर्चा अंक- ३८९७) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
--
अनीता सैनी
बहुत-बहुत धन्यवाद प्रिय अनीता ।
Deleteप्यार ही खूबसूरती का कारण, खूबसूरती प्यार का कारण नहीं। यहीं प्यार की खूबसूरती है।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद विश्ववमोहन जी .
Deleteमेरे मन के कोने-कोने को भिगोने का
ReplyDeleteमैं भी मन के किसी कोने में
तेरी नमी महसूस करूँ
मेरा भी मन करता है
कोई मुझको प्यार करे ,
स्नेह दे ....
सुन्दरता के साथ आत्मीयता लि
सहृदय कविता
बहुत-बहुत आभार सधु जी ।
Deleteबहुत-बहुत आभार सधु जी ।
Deleteये समाज देश और जहाँन में फैली मृगतृष्णा है, और इसी के पीछे लाखों प्रोडेक्ट विज्ञापन करते हैं।
ReplyDeleteआपकी रचना बहुत गहन चिंतन परक है काश दुनिया समझ पाती ।
सुंदर हृदय स्पर्शी सृजन शुभा जी।
बहुत-बहुत धन्यवाद कुसुम जी ।
Deleteवाकई बाहरी रूप के पीछे जितना समय और पैसा हम लगाते हैं मन को सुंदर बनाकर बिना किसी भेदभाव के सबसे प्रेम करना सीखने में उसका एक अंश भी लगाएं तो समाज बदल सकता है.
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद अनीता जी ।
Deleteसुंदरता की क्या कोई परिभाषा है ! यह सब तो देखने वाले की चाहत पर निर्भर है ! कभी-कभी हमारी नकारात्मक सोच ही हमें परेशान कर देती है
ReplyDeleteधन्यवाद गगन जी ।
Deleteबहुत ही गहन चिन्तनपरक लाजवाब भावाभिव्यक्ति
ReplyDeleteकहते हैं सुन्दरता देखने वाले की आँखों में होती है
और देखने वाला वही देखता है जो हम उसे दिखाते हैं.....हमें समाज के सामने अपनी खूबियों को उजागर करना होगा....।
धन्यवाद सुधा जी ।
Deleteमैं भी मन के किसी कोने में
ReplyDeleteतेरी नमी महसूस करूँ
मेरा भी मन करता है
कोई मुझको प्यार करे ,
बहुत बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति | शुभ कामनाएं |
धन्यवाद आलोक जी ।
Deleteहृदय स्पर्शी रचना
ReplyDeleteधन्यवाद ओंकार जी ।
Deleteकिसी का गोरा-काला या सांवला होना या मोटा-पतला होना, यह बहुत गहरे से रचा-बसा सिर्फ एक दृष्टि दोष ही है जिससे सभी प्रभावित हैं।
ReplyDeleteजी ,सही बात है ।दृष्टि बदलनी तो होगी न ।
Deleteसुन्दर सृजन - नमन सह।
ReplyDeleteधन्यवाद शांतनु जी ।
ReplyDeleteशुभा दी, क्या पता हमारा समाज कब इंसान की आंतरिक सुंदरता देखना सीखेगा? बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteधन्यवाद ज्योति ।
Deleteबहुत सुन्दर और सटीक
ReplyDeleteपता नहीं कब, क्यों और कैसे हमारे समाज में ऐसे भेद भाव उत्पन हो गए ... और जानते हुए भी की ये अच्छे नहीं ... चल रहे हैं हमारे बीच ... काश बदलाव जल्दी ए ...
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट रचना पर विलम्ब से आने का मुझे खेद है शुभा जी । किसी का दिल दुखाने से ज़्यादा अफ़सोसनाक काम कोई नहीं । किसी का भी दिल दुखाने से पहले सोचना चाहिए कि जब कोई हमारा दिल दुखाता है तो कैसा लगता है ।
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