Sunday, 17 November 2013

मनोवृति

नवरात्री की समाप्ति के बाद मै घर की सफाई अभियान मे लगी हुई थी । रद्दी सामान का ढेर बढता जा रहा था ,सोच रही थी कि आज तो रद्दी वाला आए तो ये सब कबाडा साफ हो जाए फिर कल तो करवा चौथ भी है । तभी रद्दी वाले की आवाज़ सुनाई दी मै दौडकर उसे बुलाने गई और फिर जल्दी-जल्दी कबाड और अखबार वगैरह इकट्ठा करने लगी । रद्दीवाला एक-एक चीज को अलग करके देख रहा था मैने कहा - भैया सब देखा हुआ है तुम जल्दी से सब ले जाओ तो वह बोला बहन जी हमारा काम है सब चीजे अच्छी तरह देख कर ही लेते है । पर मुझे तो बड़ी जलदी थी । मेरे बहुत जोर देने पर वह सब लेकर हिसाब करके चला गया । मै भी अपने दूसरे काम में लग गई । लगभग एक घंटे बाद डोरबैल बजी  । मैने दरवाजा खोला तो पाया कि वही रददीवाला खडा था बोला बहनजीआपकी रददी के अंदर से ये निकला है कहते हुए उसने छोटा सा पाउच मेरी तरफ बढाते हुए कहा । मै तो देखकर सन्न रह गई इसमें तो मेरे सोने के कान के बुंदे थे जो मैने कल पहनने के लिए निकाले थे    जल्दबाजी मे मैने उन्हें भी देखें बिना दे दिया ।अपनी लापरवाही पर कोफ्त हो रही थी । पर उस रददी वाले की ईमानदारी पर गर्व हो रहा था जिसकी वजह से आज मुझे इतना बडा नुकसान होते-होते रह गया ।मैने उसे इनाम देना चाहा पर उसने यह कहते हुए इंकार कर दिया कि ये तो मेरा फर्ज था ।

      उसी दिन की बात है करवा चौथ के दिन हम लोग मेहदी लगाते है । सोचा शौपिंग मौल के बाहर आजकल मेहदी लगाने वाले होते है वहीँ जाकर लगवा लेते है ।रात के दस बज चुके थे। वहाँ जाकर देखा तो लम्बी लाइन थी ।लगभग आधे घंटे के इंतजार के बाद हमारा नंबर आया साथ मे पोती और बहू भी थी । लगभग ग्यारह बजने को आए थे । घर पास ही था फिर भी हमनें सोचा औटोरिक्षा कर लिया जाए । बडी मुश्किल से एक औटो वाला रुका हम सोच रहे थे कि देखो कितना भला आदमी है । घर पँहुच कर मैने पूछा भैया कितने पैसे हुए  "।उसनें कहा "पैतालिस रुपये" हमनें सोचा रात का समय है ,कया बहस करें । मैने उसे सौ का नोट दिया तो वह बोला पाँच रूपये छुटटे दो । मैने कहा ठीक है आप बाकी के पैसे दो ।इसपर वह वही जोर-जोर से चिललाने लगा कि कौन से पैसे ?आपने तो मुझे पचास का ही नोट दिया था ।और वस मुझे ही झूठा ठहरा कर भाग गया ।मै  आशचर्य चकित सी उसे जाते हुए देख रही थी।
      दोनो घटनाएँ एक ही दिन की पर दोनों में कितना अंतर !यही तो है मानव की मनोवृति ।



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