Friday, 7 August 2020

व्यथा

मेरी व्यथा की कथा 
क्या कहूँ......
मैं हूँ इक "आम"आदमी 
"आम"आदमी 
जो होता नहीं 
  कभी खास...।
 कभी पेंशन पाने को 
   सरकारी दफ्तर के
  चक्कर लगाता 
    घिस जाते चप्पल 
   बिना "वजन"काम न बन पाता 
    थका -हारा ,लाचार 
      मरता क्या न करता 
     कहावत चरितार्थ करता 
      "वजन"रखने को 
        मजबूर हो जाता 
         मैं हूँ "आम"आदमी
          जो होता नहीं 
         कभी खास ...।
        हाँ....चुनावों के समय
        लगता जैसे 
          कुछ समय के लिए 
             बन जाता हूँ "खास"
             जब बडे-बडे नेता-अभिनेता 
     .        हाथ जोडते ,वोट माँगते 
              और ,एक पल के "खास"का    
                स्वाद चखता,आनंद उठाता 
              बातों में उनकी आ जाता 
               भरोसा कर लेता वायदों पर 
               कीमती मत डाल आता 
                झोली में उनकी ।
              नतीजा..... सिफ़र...
              बस वहीं का वहीं खडा रह जाता 
               मैं हूँ "आम "आदमी 
            मेरी व्यथा की कथा 
           क्या कहूँ ....।

     शुभा मेहता 
     7th Aug ,2020
        
   

36 comments:

  1. Aam aadmi kbhi khaas nhi ban skta isiliye uske vargikaran aam hai uska toh kaam.hai bas satta par kabij logon ki baaton me aana jhanse par jhanse khana aur phir unhi jhanse walon ko apna mat dena bahut khoob aam aadmi ki vyatha ko bahut hi bdhiya vyakt kiya hai wah adbhut bhasha adbhut shaili 👏👏👏😘😘😘💐💐💐😊😊😊

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  2. वाह! हर आम आदमी की यह ख़ास व्यथा है मैं हूँ "आम"आदमी
    जो होता नहीं
    कभी खास ...।
    हाँ....चुनावों के समय
    लगता जैसे
    कुछ समय के लिए
    बन जाता हूँ "खास"

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद विश्वमोहन जी ।

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  3. नतीजा..... सिफ़र...
    बस वहीं का वहीं खडा रह जाता
    मैं हूँ "आम "आदमी
    मेरी व्यथा की कथा
    क्या कहूँ ....।
    वाह बहुत सुंदर और सटीक रचना सखी।

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद सखी ।

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  4. शुभा दी, आम आदमी की व्यथा को बहुत ही सुंदर तरीके से व्यक्त किया है आपने।

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद ज्योति ।

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  5. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (09-08-2020) को     "भाँति-भाँति के रंग"  (चर्चा अंक-3788)     पर भी होगी। 
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  
    --

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    1. बहुत -बहुत धन्यवाद आदरणीय 🙏

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  6. मैं हूँ "आम "आदमी
    मेरी व्यथा की कथा
    क्या कहूँ ....।
    आम आदमी की व्यथा को उजागर करती सुंदर सृजन सखी,सादर नमन

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद सखी ।

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  7. खास होने के खास तरीके आम आदमी की पहुँच से बाहर। सुन्दर सृजन।

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद सर ।

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  8. बहुत सुंदर

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    1. धन्यवाद ओंकार जी ।

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    2. बहुत-बहुत धन्यवाद ओंकार जी ।

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  9. लाजवाब सृजन.

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद ।

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  10. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 10 अगस्त 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. धन्यवाद यशोदा जी ।जी ,जरूर आऊँगी ।

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  11. निर्मम सत्य ब्यान करती, सुन्दर रचना

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  12. यथार्थ पर प्रहार करता शानदार सृजन शुभा जी।
    वाहह्ह्ह्

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    1. धन्यवाद कुसुम जी ।

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  13. This comment has been removed by the author.

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  14. बेहतरीन सृजन आदरणीय दी।

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद सखी ।

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  15. आम आदमी को अगर अपनी ताकत का अंदाजा हो जाए तो वह हमेशा ही खास रह सकता है लेकिन उसके क्षणिक स्वार्थ मजबूरी बनकर सामने खड़े होते हैं।

    सादर

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    1. जी ,सही बात है । बहुत -बहुत आभार ।

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  16. बहुत खूब ...
    एक आम इंसान कैसे छाला जाता है बहुत सहज लिओख दिया आपने ...

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    1. धन्यवाद दिगंबर जी ।

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  17. स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

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    1. आपको भी 🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳

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  18. बहुत ही शानदार रचना

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  19. आम आदमी की व्यथा कथा...
    बहुत ही सुन्दर लाजवाब सृजन
    वाह!!!

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