Saturday, 22 August 2020

मुंडेर

यादों की मुंडेर पर बैठा ,
मन पंछी ........
सुना रहा तराने ,
 नए -पुराने 
  कुछ ही पलों में 
   करवा दिया ,
    बीते सालों का सफर ।
     बचपन में कैसे मजे से 
     खेले ,ना जानें कितने खेल 
       जी चुराया बहुत पढाई से 
       भाती नहीं थी न अधिक ....
        बस ,खेल कूद ,मौज -मस्ती 
        नृत्य ,गीत ,संगीत में ही 
 रमता था मन 
   कोई भी प्रोग्राम हो शाला में 
    बस पढाई से छुट्टी ,
   प्रेक्टिस के बहाने ...,
बस ,जीना सिर्फ़ अपने लिए 
  खुद से कितना प्यार था मुझे ,
 लेकिन न जाने अब 
  क्या हो गया ..
    क्यों नहीं करती 
      खुद की फिक्र ?
     कभी दर्पण मेंं झाँका है ....
        असमय  माथे पर  लकीरें .
         खिचड़ी केश ...
        जिम्मेदारी के बोझ तले 
       झुकी जा रही हो 
       क्या लौटना नहीं चाहती 
      वापस "उन"दिनों मे 
       नहीं चाहती खुल कर जीना ?
        अरे नहीं .....ठीक हूँ मैं तो 
       जैसी हूँ वैसी 
  और फिर लोग क्या कहेगें....
    इस उम्र में 
   क्या नाचूंगी ,गाऊँगी ?
   लोग ....अरे लोगो का क्या 
    उनका तो काम ही यही है 
     तू जी ले अपना जीवन 
      मस्ती में ....।
   

 शुभा मेहता 
 22nd Aug ,2020
         
    
  
   
       
       
   
      
    
        

31 comments:

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद सर ।

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  2. Bahut sundar aur aaj na sirf corona kaal me balki umra ke is padav me mujhe toh yahi sab toh yaad aa rha hai baalhath khel kood zid ityadi na jaane kitni manoranjak yaadein bhari padi hain ..apratim rachna adbhut abhivyakti wah shubha bahut acche 👏👏👏💐💐💐😊😊😊

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  3. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 24 अगस्त 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद । जी ,जरूर आऊँगी।

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  4. कुछ तो लोग कहेंगे.. लोगों का काम है कहना।

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद ।

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  5. बहुत सुंदर रचना सखी।

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  6. वाह !बेहतरीन आदरणीय दी 👌👌

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    1. धन्यवाद प्रिय अनीता ।

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  7. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (25 -8 -2020 ) को "उगने लगे बबूल" (चर्चा अंक-3804) पर भी होगी,आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    ---
    कामिनी सिन्हा

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    1. बहुत-बहुत आभार सखी कामिनी जी ।

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  8. बहुत ही बेहतरीन रचना सखी

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  9. बहुत-बहुत धन्यवाद सर ।

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  10. सुन्दर रचना

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    1. धन्यवाद ओंकार जी ।

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  11. लोगों का क्या ...
    जब पुराने दिन में पहुँच ही गए तो क्यों न उन्हें जिया जाये ... बिताया जाए उन्हें मस्ती के उसी आलम में जैसे छोड़ा था ...
    आप तो बीते दिनों की सैर करा लाये हैं ... कमाल की रचना ...

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    1. धन्यवाद दिगंबर जी ।

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  12. एक बहुत ही सशक्त प्रस्तुति |

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद ।

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  13. असमय माथे पर लकीरें .
    खिचड़ी केश ...
    जिम्मेदारी के बोझ तले
    झुकी जा रही हो
    क्या लौटना नहीं चाहती
    वापस "उन"दिनों मे
    लोग क्या कहेंगे ऐसा सोचकर अपने ही जीवन मे नीरसता भर लेते हैं
    अगर सम्भव हो तो लोगों की परवाह छोड़ मस्त जीवन का आनंद लेने भी गुरेज भी क्या है
    बहुत ही सुन्दर सृजन
    वाह!!!

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद सुधा जी ।

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  14. हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति । अभिनंदन शुभा जी ।

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद जितेंद्र जी ।

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  15. बहुत सुंदर सृजन

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  16. बहुत सुन्दर सृजन
    कृपा मेरे ब्लॉग पे भी पधारें

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  17. बहुत सुंदर रचना,

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