मन पंछी ........
सुना रहा तराने ,
नए -पुराने
कुछ ही पलों में
करवा दिया ,
बीते सालों का सफर ।
बचपन में कैसे मजे से
खेले ,ना जानें कितने खेल
जी चुराया बहुत पढाई से
भाती नहीं थी न अधिक ....
बस ,खेल कूद ,मौज -मस्ती
नृत्य ,गीत ,संगीत में ही
रमता था मन
कोई भी प्रोग्राम हो शाला में
बस पढाई से छुट्टी ,
प्रेक्टिस के बहाने ...,
बस ,जीना सिर्फ़ अपने लिए
खुद से कितना प्यार था मुझे ,
लेकिन न जाने अब
क्या हो गया ..
क्यों नहीं करती
खुद की फिक्र ?
कभी दर्पण मेंं झाँका है ....
असमय माथे पर लकीरें .
खिचड़ी केश ...
जिम्मेदारी के बोझ तले
झुकी जा रही हो
क्या लौटना नहीं चाहती
वापस "उन"दिनों मे
नहीं चाहती खुल कर जीना ?
अरे नहीं .....ठीक हूँ मैं तो
जैसी हूँ वैसी
और फिर लोग क्या कहेगें....
इस उम्र में
क्या नाचूंगी ,गाऊँगी ?
लोग ....अरे लोगो का क्या
उनका तो काम ही यही है
तू जी ले अपना जीवन
मस्ती में ....।
शुभा मेहता
22nd Aug ,2020
सुन्दर सृजन
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद सर ।
DeleteBahut sundar aur aaj na sirf corona kaal me balki umra ke is padav me mujhe toh yahi sab toh yaad aa rha hai baalhath khel kood zid ityadi na jaane kitni manoranjak yaadein bhari padi hain ..apratim rachna adbhut abhivyakti wah shubha bahut acche 👏👏👏💐💐💐😊😊😊
ReplyDelete😊😊😊😊
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 24 अगस्त 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद । जी ,जरूर आऊँगी।
Deleteकुछ तो लोग कहेंगे.. लोगों का काम है कहना।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद ।
Deleteबहुत सुंदर रचना सखी।
ReplyDeleteधन्यवाद सखी ।
Deleteवाह !बेहतरीन आदरणीय दी 👌👌
ReplyDeleteधन्यवाद प्रिय अनीता ।
Deleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (25 -8 -2020 ) को "उगने लगे बबूल" (चर्चा अंक-3804) पर भी होगी,आप भी सादर आमंत्रित हैं।
---
कामिनी सिन्हा
बहुत-बहुत आभार सखी कामिनी जी ।
Deleteबहुत ही बेहतरीन रचना सखी
ReplyDeleteधन्यवाद सखी ।
Deleteसारगर्भित रचना।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद सर ।
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteधन्यवाद ओंकार जी ।
Deleteलोगों का क्या ...
ReplyDeleteजब पुराने दिन में पहुँच ही गए तो क्यों न उन्हें जिया जाये ... बिताया जाए उन्हें मस्ती के उसी आलम में जैसे छोड़ा था ...
आप तो बीते दिनों की सैर करा लाये हैं ... कमाल की रचना ...
धन्यवाद दिगंबर जी ।
Deleteएक बहुत ही सशक्त प्रस्तुति |
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद ।
Deleteअसमय माथे पर लकीरें .
ReplyDeleteखिचड़ी केश ...
जिम्मेदारी के बोझ तले
झुकी जा रही हो
क्या लौटना नहीं चाहती
वापस "उन"दिनों मे
लोग क्या कहेंगे ऐसा सोचकर अपने ही जीवन मे नीरसता भर लेते हैं
अगर सम्भव हो तो लोगों की परवाह छोड़ मस्त जीवन का आनंद लेने भी गुरेज भी क्या है
बहुत ही सुन्दर सृजन
वाह!!!
बहुत-बहुत धन्यवाद सुधा जी ।
Deleteहृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति । अभिनंदन शुभा जी ।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद जितेंद्र जी ।
Deleteबहुत सुंदर सृजन
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सृजन
ReplyDeleteकृपा मेरे ब्लॉग पे भी पधारें
बहुत सुंदर रचना,
ReplyDelete