उसकी माँ घर की सफाई कर ,पोछा लगा रही थी ।
रानी ....."एक जगह बैठ नहीं सकती ,देख नहीं रही पोछा लग रहा है सब जगह पगले (पैरों के निशान )हो जाएगें ।पता नहीं कब अक्ल आएगी।उसकी दादी नें डाँटते हुए कहा ।
नन्ही रानी सहम कर एक जगह बैठ गई ।
तभी दादी जोर जोर से गाने लगी ...पगला नो पाडनार देजे रे भवानी माँ ( अर्थात पुत्र देना हे माँ ,जो पूरे घर में पदचिह्न करे )
रानी नें अपनी माँ की ओर देखा .....उसकी आँखें आँसुओं से भरी थी ।
शुभा मेहता
2nd January , 2022
प्रिय शुभा जी, थोड़े शब्दों में ही आपने हमारे समाज की दीपक तले अंधेरा वाली कड़वी सच्चाई को सामने रखा है बेटियों को प्राय इसी तरह के भेदभावपूर्ण रवैए का सामना करना पड़ता है। खासकर दादी मांओं की कुंठा शायद इसलिए भी बच्चियों पर निकलती है कि उन्होंने लड़की होने की पीड़ा को खूब अनुभव किया है। सार्थक और मार्मिक लघु कहानी के लिए बधाई।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद प्रिय सखी रेणु । आपकी सुंदर प्रतिक्रिया पढकर मन खुश हो गया ।
Deleteबहुत ही प्रासंगिक, सार्थक, सामयिक, मर्म को छूती, सत्यस्पर्शी और संवेदना को झकझोरती लघुकथा।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद विश्व मोहन जी ।
Deleteबहुत ही सराहनीय लघुकथा प्रिय शुभा दी जी शब्द नहीं है समीक्षा हेतु।
ReplyDeleteसमाज में व्याप्त ये रुड़िया...।
मन भिगो गया आपका सृजन।
नववर्ष की आपको बहुत सारी बधाई एवं ढेरों शुभकामनाएँ।
सादर नमस्कार
बहुत-बहुत धन्यवाद प्रिय अनीता ।
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आलोक जी ।
Deleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (4-1-22) को "शिक्षा का सही अर्थ तो समझना होगा हमें"(चर्चा अंक 4299)पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
--
कामिनी सिन्हा
बहुत-बहुत धन्यवाद प्रिय सखी कामिनी जी ,मेरी रचना को चर्चा मंच में स्थान देने हेतु ।
Deleteबहुत-बहुत धन्यवाद प्रिय सखी कामिनी जी ,मेरी रचना को चर्चा मंच में स्थान देने हेतु ।
Deleteबहुत बहुत बधाई आपको और हार्दिक शुभकामनाएं।कथा और नववर्ष दोनो के लिए
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद ।
Deleteबहुत ही सार्थक एवं हृदयस्पर्शी लघुकथा।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद सुधा जी ।
ReplyDeleteकम शब्दों में समाज की कड़वी सच्चाई व्यक्त की अपने, शुभा दी।
ReplyDeleteधन्यवाद ज्योति ।
Deleteबहुत ही सुन्दर लेखन
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद ।
Deleteअच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteधन्यवाद ओंकार जी ।
Deleteयही दोगलापन कचोटता है और तब और भी टीस उठती है मन में जब इसके पीछे का कारण भी एक औरत होती है
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद कविता जी ।
Deleteसमाज के कड़वे सत्य को बयां करती बहुत ही मार्मिक और हृदयस्पर्शि लघुकथा!
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद मनीषा जी ।
Deleteसार्थक अभिव्यक्ति....बहुत खूब 👍
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति
ReplyDeleteसमाज या कहें परिवार का दोहरा रवैया ऐसे दर्द भरे दृश्य आज भी हमें दिखा जाता है, सामाजिक रूढ़ियों, मनुष्य के दोहरे चरित्र को दर्शाती । चिंतनपूर्ण लघुकथा, बहुत शुभकनाएँ आपको
ReplyDeleteपुरुष सत्तात्मक मानसिकता पर चोट करती लघु कहानी।
ReplyDeleteसकारत्मक सृजन हेतू साधुवाद शुभा जी।
आज भी पुत्र की चाहत में बड़े लोग ऐसी ही बातें कर देते हैं जो नन्हे मन पर विपरीत प्रभाव डालती हैं ।
ReplyDeleteसुंदर लघु कथा ।
देर से आने के लिए क्षमाप्रार्थी ।
आपकी लिखी कोई रचना सोमवार. 31 जनवरी 2022 को
ReplyDeleteपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप