चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आलोक जी ।
Deleteनमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (31-01-2022 ) को 'लूट रहे भोली जनता को, बनकर जन-गण के रखवाले' (चर्चा अंक 4327) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
बहुत-बहुत धन्यवाद अनुज रविंद्र जी ।
Deleteवाक़ई, मन के हारे हार है, मन के जीते जीत
ReplyDeleteधन्यवाद अनीता जी ।
Deleteवाह!वाह!प्रिय शुभा दी जी बेहतरीन 👌
ReplyDeleteसादर
धन्यवाद प्रिय अनीता ।
Deleteबहुत सुंदर शुभा जी सचमुच डरने वाले ही हारते हैं निड़र तो फिर उठकर चल पड़ते हैं।
ReplyDeleteसुंदर भाव सृजन।
धन्यवाद कुसुम जी ।
Deleteबहुत ही प्रेरणादायक रचना
ReplyDeleteधन्यवाद मनीषा जी ।
Deleteबहुत उम्दा एवं प्रेरणादायक अभिव्यक्ति आदरणीय मेम ।
ReplyDeleteधन्यवाद सर ।
Deleteयहाँ लडना भी खुद है
ReplyDeleteसंभलना भी खु्द है
गिर कर उठना भी खुद है
और हार कर जीतना भी ।
बहुत सुंदर सराहनीय अभिव्यक्ति ।
बहुत-बहुत धन्यवाद सखी ।
Delete