मेरा घर ,प्यारा घर ,
छोटा ही सही ,एक सुंदर घर ,
दौड़ती हूँ जहाँ मैं इधर-उधर ,
देखती हूँ झरोखे से उन्मुक्त गगन ।
करती हूँ उसका खूब जतन
एक ओर टिमटिमाता दिया ,
भीनी सी खुशबू स्नेह भरी ।
वो गमलों से आती मिट्टी की सौंधास,
खिले हुए हैं फूल गुलाब ,मोगरा ,जूही ,
वो बेल चमेली की है मेरी सहेली ,
वो फूल सूरजमुखी का
दिलाता है अहसास सूर्योदय का
महक जाता है जिनसे मेरा घर संसार ।
जय मां हाटेशवरी...
ReplyDeleteअनेक रचनाएं पढ़ी...
पर आप की रचना पसंद आयी...
हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
इस लिये आप की रचना...
दिनांक 10/04/2018 को
पांच लिंकों का आनंद
पर लिंक की गयी है...
इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।
आदरणीय कुलदीप जी ,मेरी रचना को पांच लिंकों का आनंद पर लिंक करने के लिए हृदयतल से आभारी हूँ ।
DeleteAdbhut sundar kavita hai jo ek apnepan ka ehsas dilati hai shabd saral aur spasht hain bahut bdhiya aur likh khoob likh bahut pyaar aur ashirwad 😘😘😘😘😘💐💐💐💐💐
ReplyDeleteप्रिय शुभा जी - घर से बेहतर कोई जगह संसार में नहीं होती | सच लिखा आपने वो भी बड़े सुंदर शब्दों में | सस्नेह --
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद रेनू जी ।
Deleteबहुत सुंदर
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