Saturday, 13 December 2014

घर

  मेरा घर ,प्यारा घर ,
         छोटा ही सही  ,एक सुंदर  घर ,
     दौड़ती हूँ जहाँ मैं इधर-उधर  ,
      देखती हूँ झरोखे से उन्मुक्त गगन ।
       करती हूँ उसका खूब जतन 
      एक ओर टिमटिमाता दिया ,
     भीनी सी खुशबू स्नेह भरी ।
     वो गमलों से आती मिट्टी की सौंधास,
       खिले हुए हैं फूल गुलाब ,मोगरा ,जूही ,
     वो बेल चमेली की है मेरी सहेली ,
       वो फूल सूरजमुखी का
       दिलाता है अहसास सूर्योदय का
     महक जाता  है  जिनसे मेरा घर संसार ।
     
     
 

6 comments:

  1. जय मां हाटेशवरी...
    अनेक रचनाएं पढ़ी...
    पर आप की रचना पसंद आयी...
    हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
    इस लिये आप की रचना...
    दिनांक 10/04/2018 को
    पांच लिंकों का आनंद
    पर लिंक की गयी है...
    इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।

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    1. आदरणीय कुलदीप जी ,मेरी रचना को पांच लिंकों का आनंद पर लिंक करने के लिए हृदयतल से आभारी हूँ ।

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  2. Adbhut sundar kavita hai jo ek apnepan ka ehsas dilati hai shabd saral aur spasht hain bahut bdhiya aur likh khoob likh bahut pyaar aur ashirwad 😘😘😘😘😘💐💐💐💐💐

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  3. प्रिय शुभा जी - घर से बेहतर कोई जगह संसार में नहीं होती | सच लिखा आपने वो भी बड़े सुंदर शब्दों में | सस्नेह --

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद रेनू जी ।

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