Saturday, 13 December 2014

एकाग्रता और ध्यान

ध्यान का शब्दिक अर्थ है -किसी भी काम को मन लगा के करना । बचपन में स्कूल में शिक्षक कहते थे "ध्यान से सुनो" ,या हम जब भी कोई काम सीखते हैं तब सिखाने वाले कहते हैं-ध्यान से देखो ---यानि इसका अर्थ यही हैं कि किसी भी काम को एकाग्रता से करना
      मैंने अक्सर देखा है जब भी कोई व्यक्ति अपनी पसंद का काम करता है तो उसमे पूरी तरह डूब जाता है जैसे राधा जब रोटी बनाती है तो इतने ध्यान से गोल-गोल ,छोटी छोटी बनाती है  उसका ध्यान इसी में रहता है की सभी रोटियां एक ही आकार की बने और उस समय अगर कोई उसे बुलाये तो कम से कम तीन -चार बार आवाज देनी पड़ती है । इसी तरह रमा जब पेंटिंग करती है और विभा गाने का अभ्यास करती है तब उनका भी यही हाल होता है ,उन्हे आसपास की सुधबुध नहीं रहती ।
     तो आप इन सबको क्या कहेंगे ?मेरे हिसाब से ये ध्यान की और जाने का पहला कदम है ।
   जब भी कोई इतनी तल्लीनता से काम करता है तब विचार आने स्वतः ही कम हो जाते हैं ,मन शांत और प्रसन्न हो जाता है ।
    इससे थोडा आगे बढ़कर देखें तो "ध्यान" योग का आठवां अंग है । इसके अभ्यास से शरीर और मन दोनों के कष्ट कम हो जाते हैं ।
  लेकिन सिर्फ आँख बंद करके बैठना ध्यान नही है ।बहुत से गुरु अलग -अलग शिविरों में ध्यान की तकनीक सिखाते हैं ,जैसे 100 से 1 तक उलटी गिनती गिनो ।  शायद ऐसा करने से व्यक्ति उसी में तल्लीन हो जाता होगा और अन्य विचार कम आते होंगे ।
  धीरे धीरे अभ्यास से हम अपने मन और मस्तिष्क की अनावश्यक कल्पनाओं को कम कर सकते हैं ।
    ध्यान हमारे शारीर ,मन और आत्मा के बीच लयात्मक सम्बन्ध बनाता है  ।इससे मन और शरीर को अप्रतिम ऊर्जा मिलती है   ।
     

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