Tuesday, 10 September 2019

खा़मोश बचपन

खा़मोश -सा बैठा
रहता हरदम
  कहाँ गए रे
  बचपन तेरे
  वो खेल-कूद
   वो उछल-कूद
    शाला मेंं शिक्षक
     घर मेंं माता-पिता ..
      सबकी हैं ख्वाहिशें
        किस-किस की ख्वाहिशें
         पूरी करे ये बचपन
           भारी बस्तों के
            बोझ तले दबा
             कंधों और पीठ दर्द की
              फरियाद करता बचपन
               घर से शाला ,
               शाला से घर
               गृहकार्य के बोझ से
                लदा बचपन
               ऊपर से ये क्लास
              वो क्लास ..
               आखिर क्या-क्या
                 करे ये बचपन
                 कोई ना पूछे
                 चाहे क्या , तू बचपन
                 अभी से दिमागी परेशानी से
              घिरने लगा तू
            कैसा हो गया है रे तू
            बचपन .......    ।

      शुभा मेहता
   10th Sept .2019
   
    
  
          
               
                 

14 comments:

  1. Bahut makool aur vastavik chitran bachpan ab bachpan nhi rha paida hite na hote school me dakhila aur phir bojha kandhon par jo chdha uska ant aakhiri saans tak dhona pdta hai wah adbhut dheron pyaar aur khoob khoob likh 😘😘😘😘👏👏👏👏👌👌😊😊😊😊

    ReplyDelete
  2. आज़ का बचपन दबा है सबके सपनों के बोझ तले। बहुत सुंदर और सार्थक अभिव्यक्ति सखी

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद सखी ।

      Delete
  3. आपका कहना सही है पर बचपन ऐसा हो गया या ... हमने उसे ऐसा बना दिया ...
    दौड़ रहा है हर कोई ... ये अंधी दौड़ है पता नहीं कहाँ अंत होगा ... बचपन बचेगा भी या ... बहुत सार्थक और सामयिक रचना है ...

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत-बहुत आभार ,दिगंबर जी ।

      Delete
  4. आपकी लिखी रचना "पाँच लिंकों का आनन्द" के हम-क़दम के 88 वें अंक में सोमवार 16 सितंबर 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी ,बहुत -बहुत धन्यवाद रविन्द्र जी ।

      Delete
  5. बहुत सुन्दर सटीक ....

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया ।

      Delete
  6. बहुत ही सुंदर रचना शुभा जी ,माँ बाप की ख्वाहिशो को पूरा करते करते बचपन खामोश हो गया है ,सादर

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद कामिनी जी ।

      Delete
  7. प्रिय शुभा बहन इस विषय पर एक लेख लिखने का मन था , आपकी रचना पढ़ी तो बहुत अच्छा लगा | ऐसे विषय उठाने चाहियें | सच में हमें अपना बचपन याद आता है , वो मस्ती और बेफिक्री वाला बचपन आज मैथ और साइंस के सवालों में डूबे बच्चे समय से पहले बड़े दिखाई पड़ते हैं | माँ बाप की महत्वाकांक्षा का बोझ उठाये ये बच्चे कहाँ अपना बालपन जी पाते हैं | सार्थक मार्मिक रचना के लिए हार्दिक बधाई |

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद प्रिय रेनू बहन । आपके लेख का इंतज़ार रहेगा ।

      Delete