आजकल' कोरोना 'की वजह से सभी अपने -अपने घरों में है । यह अच्छी बात है कि घर का पुरुष वर्ग भी दैनिक कार्य जैसे झाडू -पोछा ,बर्तन आदि आदि
(मैं इसे मदद का नाम नहीं दूँगी )कर रहे हैं ।
इसको लेकर काफी कुछ वीडियो बन रहे हैं जिसमें पुरुषों को झाडू लगाते हुए ,बर्तन साफ करते हुए या फिर आटा गूंधते हुए दिखाया जाता है ,और पीछे से हँसी की आवाज ...। पुरुष वर्ग इसे मदद कह कर अहसान जताते है ..देखो कितना काम करवाया आज ..।
मेरा प्रश्न यह है ...इसे मदद का नाम क्यों देते है ?
क्या घर केवल महिलाओं का है ?
क्या सारे काम करना महिलाओं की जिम्मेदारी है ?
क्या कभी ऐसा होगा जब पुरुष वर्ग इस भावना से काम करे कि चलो मिलकर ' अपना ' काम करते है ।
नोट ....ये विचार मेरे अपनें है ....😊
शुभा मेहता
2ndApri ,2020
Bahut sahi vichar hain purush varg (main bhi shamil hoon jisme( sadiyon se pitrisatta ke manobhav se grasit hai jitni bhi cheshta ki jaay vah vyarth hi hoti hai kyon ki sarvpratham hamare samaj ka dhancha hi kuch aeisa hai puja karvayega toh purush daah sanskar karwayega toh purush in dhongo se hame upar uthna hi hoga ye mere vichar hain pta nhi hum kab is mansikta se niklenge 👏👏👏😘😘😘💐💐💐👍👍👍😊😊😊
ReplyDelete😊😊😊😊
Deleteतेरे अपने विचार बहुत अच्छे है, परंतु समाज की मानसिकता अभी भी लगभग वही है।कुछ जगह थोड़ा परिवर्तन आया है पर वो बहुत सूक्ष्म है।
ReplyDeleteआएगा भाई ,समय जरूर लगेगा ।
Deleteबिल्कुल सही लिखा है आपने । समाज को आईना दिखाती है आपकी यह अभिव्यक्ति । एक मन मंथन की आवश्यकता है कि गृहकार्य एक सामुहिक पारिवारिक दायित्व है।
ReplyDeleteबहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीया शुभा जी।
बहुत-बहुत धन्यवाद पुरुषोत्तम जी ।
Deleteएक और विपरीत प्रसंग / संदेश पर भी नजर डालें, जिसे मेरे किसी मित्र ने एक ग्रुप में प्रहसन हेतू भेजा है...
ReplyDeleteइस समय इंजीनियर लोगों का सबसे खराब समय चल रहा है ....
घर बैठ के पत्नियां उनके इंजीनियरिंग स्किल का टेस्ट ले रही हैं ...
सबसे बुरा हाल Electronics /Electrical वालों का है ...
प्रेस/मिक्सी नहीं ठीक कर पाने के कारण डिग्री संदेह के घेरे में ...
सिविल इंजीनियर तो झाड़ू पोछा लगाकर अपनी इज़्ज़त बचा रहें हैं।
शायद, इसके मूलभाव के विस्तारीकरण की आवश्यकता नहीं है।
जीवन एक सामंजस्य है, पुरुष व महिला दोनो ही एक दूसरे पर समान रूप से आश्रित हैं ।
😊😊😊😍
सही है ,सामंजस्य तो है ..।
Deleteबिलकुल सही सवाल ,आज भी समाज में ज्यादातर ऐसे ही हालात हैं ,परुषोतम जी बड़ा अच्छा विचार रखा हैं
ReplyDelete" जीवन एक सामंजस्य है, पुरुष व महिला दोनो ही एक दूसरे पर समान रूप से आश्रित हैं " और धीरे धीरे ये दृश्य दिखाई भी पड़ रहा हैं ,सादर नमन शुभा जी
धन्यवाद प्रिय सखी ।
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ReplyDeleteसटीक और सामयिक
ReplyDeleteधन्यवाद ओंकार जी ।
Deleteबहुत -बहुत धन्यवाद प्रिय अनीता जी ।
ReplyDeleteसही कहा शुभाजी
ReplyDeleteधन्यवाद मीना जी ।
Deleteएकदम सटीक... सही कहा घर के कार्य करने में एहसान किस बात का....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लेख।
बहुत-बहुत धन्यवाद सुधा जी ।
Deleteअच्छी पोस्ट |
ReplyDeleteधन्यवाद तुषार जी ।
Deleteसही कहा शुभा दी। घर के कार्य करना सभी की सामूहिक जबाबदारी हैं।
ReplyDeleteधन्यवाद ज्योति ।
Deleteपुरुष अपना समझा कर ही काम करते हैं और जो नहीं करते उन्हें करना चाहिए ...
ReplyDeleteघर सब का है ... सब के प्रयास शामिल होने चाहियें ...
धन्यवाद दिगंबर जी ।
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