या पेट की...
एक जलती है
तब दूसरी बुझती है
और चूल्हा जलता कब है?
पूछो उन मजदूरों से .. ....
आज बोल कर गया था
घरवाली से
चूल्हा जलाने की
तैयारी रखना
आज तो कुछ न कुछ
कमाकर ही लौटूँगा ।
घरवाली बोली कुछ नहीं ,
साँझबेला में
बच्चे , झोंपडी के अंदर
पैबंद लगे
परदेनुमा लटकते टाट के
छेद में से झाँककर
देख रहे थे माँ को
चूल्हे में लगाते लकडियाँ
लगता है आज तो जलेगा चूल्हा
सोच रहे थे ...
रोज माँ गीली पट्टी पेट पर रख
सुला देती है ..
हे ईश्वर आज तो
जरूर कुछ मिल जाए बाबा को
कर रहे थे प्रार्थना
मूँदे आँखे ..।
शुभा मेहता
20th ,April ,20200
Wah adbhut abhivyakti ek dainandin kamane wale majdoor aur uske pariwar par bhook ki aag ka chulha isi tarah roj jlta hai kbhi khana naseeb ho jaata kbhi nhi ....tak taki lagani kbhi samapt nhi hoti aaj ke is mahaul me majdoor ki trasadi ko bahut hi majbooti se chitrit kiya hai 👏👏👏😘😘😘💐💐💐😊😊😊
ReplyDelete,😊😊😊😊
Deleteमर्मस्पर्शी
ReplyDeleteगरीब सपनों में जीना सीख जाते हैं इसलिए दुनियावाले भी उन्हें सपने दिखाकर अपना उल्लू सीधा करने में पीछे नहीं रहते
धन्यवाद कविता जी ।
Deleteपेट की आग दिल को पिघलाती हुई@
ReplyDeleteधन्यवाद विश्ववमोहन जी ।
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार (24-04-2020) को "मिलने आना तुम बाबा" (चर्चा अंक-3681) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
बहुत-बहुत धन्यवाद सखी मीना जी ।
Deleteआग
ReplyDeleteमर्म को छूती है रचना ... सच है आग जो जलती है पेट में उसको बुझाना बहुत ज़रूरी है ...
धन्यवाद दिगंबर जी ।
Deleteबहुत कठोर सत्य।
ReplyDeleteभावुकता हर शब्द में है...यह केवल रचना मात्र नहीं, इसमें दुःख के ऐसे क्षण को लिखा गया जिसे पूर्ण रूप से अनुभव कर लेना इतना आसान नहीं।
प्रार्थना...! उनलोगों के लिए।
बहुत-बहुत धन्यवाद प्रकाश जी ।
Deleteवाह !बहुत ही सुंदर सृजन प्रिय सखी
ReplyDeleteधन्यवाद सखी ।
Deleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteधन्यवाद ओंकार जी ।
Deleteबहुत ही अच्छी कविता |
ReplyDeleteबहुत-बहुत आभार आपका ।
Deleteएक कटु सत्य.... बहुत ही हृदयस्पर्शी मार्मिक सृजन।
ReplyDeleteधन्यवाद सखी सुधा जी ।
Deleteसच्चाई की अद्भुत अभिव्यक्ति
ReplyDeleteधन्यवाद भाई ।
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
२७ अप्रैल २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बहुत-बहुत आभार श्वेता ।
Deleteबेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति प्रिय सखी। अप्रतीम
ReplyDeleteबहुत-बहुत आभार सखी ।
Deleteबेहतरीन प्रस्तुति ! बहुत सुंदर आदरणीया ।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद ।
Deleteमार्मिक,यथार्थ जीवन का परिचय कराती रचना
ReplyDeleteआदरणीया/आदरणीय आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर( 'लोकतंत्र संवाद' मंच साहित्यिक पुस्तक-पुरस्कार योजना भाग-३ हेतु नामित की गयी है। )
ReplyDelete'बुधवार' २९ अप्रैल २०२० को साप्ताहिक 'बुधवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य"
https://loktantrasanvad.blogspot.com/2020/04/blog-post_29.html
https://loktantrasanvad.blogspot.in/
टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'बुधवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति हमारा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'
मार्मिक एवं सत्य।
ReplyDeleteबहुत खूब लिखा आपने आदरणीया दीदी जी। सादर प्रणाम 🙏