क्या कहूँ......
मैं हूँ इक "आम"आदमी
"आम"आदमी
जो होता नहीं
कभी खास...।
कभी पेंशन पाने को
सरकारी दफ्तर के
चक्कर लगाता
घिस जाते चप्पल
बिना "वजन"काम न बन पाता
थका -हारा ,लाचार
मरता क्या न करता
कहावत चरितार्थ करता
"वजन"रखने को
मजबूर हो जाता
मैं हूँ "आम"आदमी
जो होता नहीं
कभी खास ...।
हाँ....चुनावों के समय
लगता जैसे
कुछ समय के लिए
बन जाता हूँ "खास"
जब बडे-बडे नेता-अभिनेता
. हाथ जोडते ,वोट माँगते
और ,एक पल के "खास"का
स्वाद चखता,आनंद उठाता
बातों में उनकी आ जाता
भरोसा कर लेता वायदों पर
कीमती मत डाल आता
झोली में उनकी ।
नतीजा..... सिफ़र...
बस वहीं का वहीं खडा रह जाता
मैं हूँ "आम "आदमी
मेरी व्यथा की कथा
क्या कहूँ ....।
शुभा मेहता
7th Aug ,2020
Aam aadmi kbhi khaas nhi ban skta isiliye uske vargikaran aam hai uska toh kaam.hai bas satta par kabij logon ki baaton me aana jhanse par jhanse khana aur phir unhi jhanse walon ko apna mat dena bahut khoob aam aadmi ki vyatha ko bahut hi bdhiya vyakt kiya hai wah adbhut bhasha adbhut shaili 👏👏👏😘😘😘💐💐💐😊😊😊
ReplyDelete,😉😉😉😉
Deleteवाह! हर आम आदमी की यह ख़ास व्यथा है मैं हूँ "आम"आदमी
ReplyDeleteजो होता नहीं
कभी खास ...।
हाँ....चुनावों के समय
लगता जैसे
कुछ समय के लिए
बन जाता हूँ "खास"
बहुत-बहुत धन्यवाद विश्वमोहन जी ।
Deleteनतीजा..... सिफ़र...
ReplyDeleteबस वहीं का वहीं खडा रह जाता
मैं हूँ "आम "आदमी
मेरी व्यथा की कथा
क्या कहूँ ....।
वाह बहुत सुंदर और सटीक रचना सखी।
बहुत-बहुत धन्यवाद सखी ।
Deleteशुभा दी, आम आदमी की व्यथा को बहुत ही सुंदर तरीके से व्यक्त किया है आपने।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद ज्योति ।
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (09-08-2020) को "भाँति-भाँति के रंग" (चर्चा अंक-3788) पर भी होगी।
ReplyDelete--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
--
बहुत -बहुत धन्यवाद आदरणीय 🙏
Deleteमैं हूँ "आम "आदमी
ReplyDeleteमेरी व्यथा की कथा
क्या कहूँ ....।
आम आदमी की व्यथा को उजागर करती सुंदर सृजन सखी,सादर नमन
बहुत-बहुत धन्यवाद सखी ।
Deleteखास होने के खास तरीके आम आदमी की पहुँच से बाहर। सुन्दर सृजन।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद सर ।
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteधन्यवाद ओंकार जी ।
Deleteबहुत-बहुत धन्यवाद ओंकार जी ।
Deleteलाजवाब सृजन.
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद ।
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 10 अगस्त 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteधन्यवाद यशोदा जी ।जी ,जरूर आऊँगी ।
Deleteनिर्मम सत्य ब्यान करती, सुन्दर रचना
ReplyDeleteधन्यवाद गगन जी ।
Deleteयथार्थ पर प्रहार करता शानदार सृजन शुभा जी।
ReplyDeleteवाहह्ह्ह्
धन्यवाद कुसुम जी ।
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबेहतरीन सृजन आदरणीय दी।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद सखी ।
Deleteआम आदमी को अगर अपनी ताकत का अंदाजा हो जाए तो वह हमेशा ही खास रह सकता है लेकिन उसके क्षणिक स्वार्थ मजबूरी बनकर सामने खड़े होते हैं।
ReplyDeleteसादर
जी ,सही बात है । बहुत -बहुत आभार ।
Deleteबहुत खूब ...
ReplyDeleteएक आम इंसान कैसे छाला जाता है बहुत सहज लिओख दिया आपने ...
धन्यवाद दिगंबर जी ।
Deleteस्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
ReplyDeleteआपको भी 🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
Deleteबहुत ही शानदार रचना
ReplyDeleteआम आदमी की व्यथा कथा...
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर लाजवाब सृजन
वाह!!!