बरसात ..आहा.....
नन्ही -नन्ही फुहारों का
वो स्पर्श ...कितना अद्भुत !!
मन आनंद मगन
माटी की खुशबू ..
अपनी ही खुशबू
तू भी माटी ,
मैं भी माटी ,
मिल जाना है
तुझमें ही
फिर काहे इतना झमेला
तेरा -मेरा ,इसका -उसका
सब माया का खेला ।
शुभा मेहता
9th July ,2021
अरे वाह दी कम शब्दों में कितना सारगर्भित संदेश.
ReplyDeleteतू भी माटी मैं भी माटी बहुत गूढ़ पंक्तियाँ।
प्रणाम दी
सादर।
धन्यवाद श्वेता ।
Deleteमाया.. महाठगिनी, फिर भी..............!
ReplyDeleteधन्यवाद गगन जी ।
Deleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (०९-०७-२०२१) को
'माटी'(चर्चा अंक-४१२१) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
धन्यवाद प्रिय अनीता ।
DeleteGreat words. Just awesome
ReplyDeleteThanku so much
Deleteबहुत बहुत सुन्दर मधुर रचना
ReplyDeleteधन्यवाद आलोक जी ।
Deleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति,शुभा दी।
ReplyDeleteधन्यवाद ज्योति ।
Deleteतू भी माटी ,
ReplyDeleteमैं भी माटी ,
मिल जाना है
जीवन का यही आखिरी सत्य,बहुत ही सुंदर आध्यत्म भाव से भरपूर सृजन शुभा जी ,सादर नमन
धन्यवाद सखी ।
Deleteधन्यवाद सखी ।
Deleteमैं भी माटी ,
ReplyDeleteमिल जाना है
तुझमें ही
फिर काहे इतना झमेला
तेरा -मेरा ,इसका -उसका
सब माया का खेला ।---गहन लेखन...शुभा जी।
धन्यवाद संदीप जी ।
Deleteजीवन की नश्वरता बताती अप्रतिम रचना । बहुत सुन्दर सृजन शुभा जी !
ReplyDeleteधन्यवाद सखी मीना जी ।
Deleteवाह, बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना,दिल को छू गई, शुभकामनाएं शुभा जी।
ReplyDeleteधन्यवाद जिज्ञासा जी ।
Deleteबहुत सुंदर।🌻
ReplyDeleteधन्यवाद शिवम् जी ।
Deleteतू भी माटी ,
ReplyDeleteमैं भी माटी ,
मिल जाना है
तुझमें ही
बहुत बढिया शुभा जी | अपने ही जैसी सरल , सुबोध और सार्थक रचना लिख डाली आपने | हार्दिक शुभकामनाएं|
धन्यवाद प्रिय सखी रेणु ।
Deleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteधन्यवाद ओंकार जी ।
ReplyDeleteबस आपकी रचना के लिए मुनव्वर राणा एक शेर कि
ReplyDelete"तमाम उम्र हम इक दूसरे से लड़ते रहे
मगर मरे तो बराबर में जा के लेट गए"
जीते जी के झमेले हैं सब मिट्टी के पुतले में प्राण क्या फुके गये.
सुंदर रचना.
नई पोस्ट पौधे लगायें धरा बचाएं
बहुत खूब ..
ReplyDeleteमाया का खेल ... प्राकृति तो ऐसी है ... सबको मोहित कर देती है ...
बूंदों का असर, सर्द मौसम का खेल ... हर मौसम असर डालता है ...
सुंदर पोस्ट।
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