Sunday, 8 May 2022

बस....अब और नहीं

बस ,अब और नहीं 
  आखिर सीमा होती है 
  हर चीज की .....
   पीछे मुडकर देखती हूँ 
   तो सोचती हूँ 
  क्या पाया अब तक जीवन में
   दौडती रही ,भागती रही 
    कभी इसके लिए 
  कभी उसके लिए 
   और मेरे सपने 
     उनका क्या ?
    देखे तो थे 
    कई सपने ....
    मुक्त गगन में 
    उडना चाहा था 
     छूना चाहती थी 
      आसमान ....
     पर समाज की सोच ...
      लडकी हो .....
       क्या करोगी उडकर ..
        लडकी हो ..धीरे बोलो 
         लडकी हो झुककर चलो 
         करना क्या है 
          ज्यादा पढकर ..
          आखिर बनानी तो 
           रोटियाँ ही हैं.....
           पर बस अब और नहीं 
            थक गई हूँ एक पाँव पर 
             नाचने -नाचते .......
              तो भई करना क्या चाहती हो ?
               सपने पूरे करना और क्या 
            क्या......पागल हो गई हो 
            अपनी उम्र तो देखो ..
             नहीं ..बस अब और नहीं 
               अब कोई फर्क नहीं पडता 
                कोई क्या कहेगा 
                ठान लिया है अब तो 
                जो करना है कर के रहूँगी 
                 बहुत जी लिया डर -डर के 
                  अब तो मनमर्जियां करूँगी ।



शुभा मेहता 
  9th May ,2022
                     

    


6 comments:

  1. वाह ! देर आयद दुरस्त आयद ! सपनों को पूरा करने की कोई उम्र नहीं होती ! सुंदर सृजन !

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद अनीता जी ।

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  2. बहुत जरूरी है पीछे देखना और सबक लेना ...

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  3. पीछे देखकर या तो सबक ले कर ले वह सब जो छूट गया या फिर पीछे कभी देखज ही नहीं... दर्द के सिवा और कुछ नहीं पीछे।
    बहुत ही सुन्दर एवं सार्थक सृजन ।

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  4. हर लड़की के मन की गहन वेदना 🙁🙁🙏🙏♥️♥️

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