Tuesday, 15 April 2014

पौधे

पौधे जो हमनें लगाए थे ,आँगन में अपने ,
  बन गए हैं आज वो वॄक्ष बड़े  ।
     पाला था बड़े जतन से उन्हें ,
    पानी, मिट्टी ,खाद सभी कुछ ,
     दिया समय -समय पर ।
     और शायद इसीलिये ये वृक्ष ,लदे है फलों से ,     झुके जा रहे विनम्रता से ,मानो कह रहे हो ,
   उतारने दो हमें कर्ज अपना ।
     काश ,इंसान भी ऐसा बन पाता ।

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