पौधे जो हमनें लगाए थे ,आँगन में अपने ,
बन गए हैं आज वो वॄक्ष बड़े ।
पाला था बड़े जतन से उन्हें ,
पानी, मिट्टी ,खाद सभी कुछ ,
दिया समय -समय पर ।
और शायद इसीलिये ये वृक्ष ,लदे है फलों से , झुके जा रहे विनम्रता से ,मानो कह रहे हो ,
उतारने दो हमें कर्ज अपना ।
काश ,इंसान भी ऐसा बन पाता ।
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