Wednesday, 2 October 2013

बापू के बंदर

गाधीजी के बंदर तीन सीख हमे देते अनमोल बचपन में पढ़ी थी ये कविता, पर, आज तो मानव को,बुराई देखने में ही रुचि है,हर तरफ खोजता है,लगता है शायदअब अचछाई देखने वाला चशमा ईजाद करना पडेगा बुरी बात पर मत दो कान,पर हमें तो कान लगा कर बुराई सुनने की आदत पडी हुई है,जहाँ चार लोग इकटठे हुए कि शुरू हो गई किसी की बुराई ।और कडवे बोल बोलने में तो इनसान माहिर है ,चाहे किसी को भला लगे या बुरा ।अब तो हम वचनों से भी दरिद्र होते जा रहे हैं । आज कहां है गाधीजी की वो सीख चलो हम कोशिश करें उसे ढूढ़ने की

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